अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
गढवाल का शेर--वीर कप्पू चौहान ।लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित ।हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।गढवाल जो प्राचीन ग्रन्थों में स्वर्णभूमि,तपोभूमि,हिमवन्त,बद्रीकाश्रम,केदारखन्ड,उत्तराखंड के नाम से प्रसिद्ध है ।यह एक पर्वतीय प्रदेश है।पर्वत शिखरों पर अनेक भग्नावशिष्ट गढ़ो के कारण इसका नाम गढवाल पडा ।सन् 1500ई0की बात है ।अजयपाल गढवाल के राजा थे।अजयपाल ने सन् 1512में गढवाल की राजधानी देवलगढ़ से श्रीनगर स्थानांतरित की।इस संदर्भ में सभी गढ़पतियों को आमंत्रित किया ।अधिकांश गढ़पतियों ने इस आमन्त्रण को स्वीकार किया ।इन्हीं गढ़ों में उदयपुर परगने की जुवा पट्टी में पावन गंगा के तट पर स्थित एक ऊँचे शिखर पर उप्पूगढ़ स्थित था ।इस गढ़ का शासक कप्पू चौहान था ।कप्पू चौहान में मातृ भूमि के प्रति प्रेम कूट कूट कर भरा हुआ था ।उन्हें किसी की अधीनता में रहना स्वीकार न था।कप्पू चौहान को अजयपाल ने संदेश भेजा---गढवाल के अधिकांश गढ़पतियों ने मेरी अधीनता स्वीकार कर ली है ।आप भी मेरी अधीनता स्वीकार कर लें या युद्ध के लिए तैयार रहें ।इस सन्देश को पढकर कप्पू चौहान को बहुत गुस्सा आया ।तुरन्त सन्देश में लिखा---मैं पशुओं में शेर हूँ ।पक्षियों में गरूण की भांति हूँ ।किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता हूँ ।झुकने से अच्छा मुझे मर जाना अच्छा लगता है ।जब तक शरीर में प्राण रहेगा तबतक मैं लडने को तैयार रहूंगा ।अजयपाल ने उप्पूगढ़ पर आक्रमण करने के लिए बडी सेना भेजी।स्वयं भी चल दिया ।सायंकाल का समय था।कप्पू की मां नदी के उस पार बहुत बडी सेना को देखा ।इसकी जानकारी अपने बेटे कप्पू को दी।कप्पू ने कहा-यह सेना राजा अजयपाल की है।हमारे गढ़ पर आक्रमण करने के लिए बडी सेना भेजी है ।उसे हमारी स्वतन्त्रता अच्छी नहीं लग रही है ।मां ने कहा --उस विशाल सेना के साथ जीतना संभव नहीं है ।इस स्थिति में समझौता करना ही बेहतर है ।कप्पू चौहान ने कहा --जीवन आराम व सुख सुविधा भोगने के लिए नहीं मिला है ।मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति देना भी अपने आप में उपलब्धि है।कप्पू चौहान घर से निकला ।तुरन्त झूला पुल को काटकर गंगा नदी में फेंक दिया ।मन ही मन प्रसन्न हो उठा कि मेरा किला अब सुरक्षित है ।शत्रु अब सरलता गंगा पार नहीं आ सकेंगे । प्रातःकाल दोनों ओर से युद्ध की तैयारी होने लगी ।कप्पू चौहान की मां ने देबू नाम के सेनानायक को बुलाया और कहा कि---अब जंग छिड़ चुकी है ।इसे रोकना अब संभव नहीं है ।मुझे अपने पुत्र कप्पू चौहान के पराक्रम पर पूरा विश्वास है ,लेकिन दुर्भाग्य वश कप्पू चौहान राजा की गिरफ्त में आ जाता है,तो मुझे तत्काल सूचित कर देना ।जब हमारा गढ़ पति ही नहीं रहेगा तो हम भी अधीनता स्वीकार क्यों करें?दोनों सेनाओं में भंयकर युद्ध होने लगा।नया पुल बना दिया गया ।उप्पूगढ़ के सेनाओं के द्वारा घेर लिया गया ।कप्पू चौहान राजा की सेना पर भारी पड गया ।कप्पू चौहान ने पल भर में ही राजा की सम्पूर्ण सेना को पराजित कर दिया ।खुशी खुशी से अपने किले की ओर प्रस्थान करने लगा ।देखा कि सारा किला आग की लपटों से जल रहा है।यह देखकर कप्पू चौहान दंग रह गया ।स्थिति इस तरह की बनी कि कप्पू चौहानके सेना नायक ने भंयकर युद्ध देखा।उस युद्ध की विभीषिका बहुत खतरनाक हो गई थी उसे कप्पू चौहान कहीं दिखाई नहीं दिया ।उसे लगा कि गणपति वीर गति को प्राप्त हो गये हैं ।यह खबर सेना नायक ने कप्पू चौहान की माता को दी ।उन्हें यह बात सहन नहीं हुई ।उन्होंने सम्पूर्ण किला जलाकर अपने प्राणों की आहुति दे दी ।कप्पू चौहान यह सब सहन नहीं कर पाया,और बेहोश हो गया ।जब होश में आया ,तो अपने आपको राजा अजयपाल के सामने पाया।राजा ने उसे प्रलोभन दिया कि तूम मेरी अधीनता स्वीकार कर लो और इस गढ़ के अधिपति के रूप में बने रहो।कप्पू चौहान ने कहा -- स्वाधीनता को खोकर मुझे किसी पद की लालसा नहीं है ।मै अपना सिर किसी के आगे नहीं झुकाऊगा ।अजयपाल को गुस्सा आ गया ।उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि---इसका सिर इस तरह से काटो कि वह मेरे पैरों में आ गिरे ।कप्पू चौहान ने चुपके से दो मुट्ठी रेत अपने मुंह में रख दी ।जैसे ही सैनिकों ने उसकी गर्दन काटी उसने अपना सिर पीछे की ओर कर दिया ।सिर पीछे की ओर जा गिरा ,उसके मुंह की रेत अजयपाल के चेहरे पर जा गिरी ।यह दृश्य देखकर अजयपाल दंग रह गया ।कहने लगा---जीत तुम्हारी हुई ।मैं बुरी तरह से पराजित हुआ।मैंने अपने जीवन में बहुत सारे योद्धा देखें,लेकिन तुम्हारे समान वीर पराक्रमी स्वाभिमानी आज तक नहीं देखा ।मै अजयपाल तुम्हारी वीरता को हृदय से प्रणाम करता हूँ ,फिर राजा अजयपाल कप्पू चौहान की शवयात्रा में स्वयं पैदल गया ।अपने हाथों से चिता को अग्नि दी। इस प्रकार कप्पू चौहान भारतीय इतिहास में बीरता और मातृ भूमि के प्रति प्रेम के कारण सदा सदा के लिए अमर हो गया ।
गढवाल का शेर--वीर कप्पू चौहान ।लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित ।हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।गढवाल जो प्राचीन ग्रन्थों में स्वर्णभूमि,तपोभूमि,हिमवन्त,बद्रीकाश्रम,केदारखन्ड,उत्तराखंड के नाम से प्रसिद्ध है ।यह एक पर्वतीय प्रदेश है।पर्वत शिखरों पर अनेक भग्नावशिष्ट गढ़ो के कारण इसका नाम गढवाल पडा ।सन् 1500ई0की बात है ।अजयपाल गढवाल के राजा थे।अजयपाल ने सन् 1512में गढवाल की राजधानी देवलगढ़ से श्रीनगर स्थानांतरित की।इस संदर्भ में सभी गढ़पतियों को आमंत्रित किया ।अधिकांश गढ़पतियों ने इस आमन्त्रण को स्वीकार किया ।इन्हीं गढ़ों में उदयपुर परगने की जुवा पट्टी में पावन गंगा के तट पर स्थित एक ऊँचे शिखर पर उप्पूगढ़ स्थित था ।इस गढ़ का शासक कप्पू चौहान था ।कप्पू चौहान में मातृ भूमि के प्रति प्रेम कूट कूट कर भरा हुआ था ।उन्हें किसी की अधीनता में रहना स्वीकार न था।कप्पू चौहान को अजयपाल ने संदेश भेजा---गढवाल के अधिकांश गढ़पतियों ने मेरी अधीनता स्वीकार कर ली है ।आप भी मेरी अधीनता स्वीकार कर लें या युद्ध के लिए तैयार रहें ।इस सन्देश को पढकर कप्पू चौहान को बहुत गुस्सा आया ।तुरन्त सन्देश में लिखा---मैं पशुओं में शेर हूँ ।पक्षियों में गरूण की भांति हूँ ।किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता हूँ ।झुकने से अच्छा मुझे मर जाना अच्छा लगता है ।जब तक शरीर में प्राण रहेगा तबतक मैं लडने को तैयार रहूंगा ।अजयपाल ने उप्पूगढ़ पर आक्रमण करने के लिए बडी सेना भेजी।स्वयं भी चल दिया ।सायंकाल का समय था।कप्पू की मां नदी के उस पार बहुत बडी सेना को देखा ।इसकी जानकारी अपने बेटे कप्पू को दी।कप्पू ने कहा-यह सेना राजा अजयपाल की है।हमारे गढ़ पर आक्रमण करने के लिए बडी सेना भेजी है ।उसे हमारी स्वतन्त्रता अच्छी नहीं लग रही है ।मां ने कहा --उस विशाल सेना के साथ जीतना संभव नहीं है ।इस स्थिति में समझौता करना ही बेहतर है ।कप्पू चौहान ने कहा --जीवन आराम व सुख सुविधा भोगने के लिए नहीं मिला है ।मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति देना भी अपने आप में उपलब्धि है।कप्पू चौहान घर से निकला ।तुरन्त झूला पुल को काटकर गंगा नदी में फेंक दिया ।मन ही मन प्रसन्न हो उठा कि मेरा किला अब सुरक्षित है ।शत्रु अब सरलता गंगा पार नहीं आ सकेंगे । प्रातःकाल दोनों ओर से युद्ध की तैयारी होने लगी ।कप्पू चौहान की मां ने देबू नाम के सेनानायक को बुलाया और कहा कि---अब जंग छिड़ चुकी है ।इसे रोकना अब संभव नहीं है ।मुझे अपने पुत्र कप्पू चौहान के पराक्रम पर पूरा विश्वास है ,लेकिन दुर्भाग्य वश कप्पू चौहान राजा की गिरफ्त में आ जाता है,तो मुझे तत्काल सूचित कर देना ।जब हमारा गढ़ पति ही नहीं रहेगा तो हम भी अधीनता स्वीकार क्यों करें?दोनों सेनाओं में भंयकर युद्ध होने लगा।नया पुल बना दिया गया ।उप्पूगढ़ के सेनाओं के द्वारा घेर लिया गया ।कप्पू चौहान राजा की सेना पर भारी पड गया ।कप्पू चौहान ने पल भर में ही राजा की सम्पूर्ण सेना को पराजित कर दिया ।खुशी खुशी से अपने किले की ओर प्रस्थान करने लगा ।देखा कि सारा किला आग की लपटों से जल रहा है।यह देखकर कप्पू चौहान दंग रह गया ।स्थिति इस तरह की बनी कि कप्पू चौहानके सेना नायक ने भंयकर युद्ध देखा।उस युद्ध की विभीषिका बहुत खतरनाक हो गई थी उसे कप्पू चौहान कहीं दिखाई नहीं दिया ।उसे लगा कि गणपति वीर गति को प्राप्त हो गये हैं ।यह खबर सेना नायक ने कप्पू चौहान की माता को दी ।उन्हें यह बात सहन नहीं हुई ।उन्होंने सम्पूर्ण किला जलाकर अपने प्राणों की आहुति दे दी ।कप्पू चौहान यह सब सहन नहीं कर पाया,और बेहोश हो गया ।जब होश में आया ,तो अपने आपको राजा अजयपाल के सामने पाया।राजा ने उसे प्रलोभन दिया कि तूम मेरी अधीनता स्वीकार कर लो और इस गढ़ के अधिपति के रूप में बने रहो।कप्पू चौहान ने कहा -- स्वाधीनता को खोकर मुझे किसी पद की लालसा नहीं है ।मै अपना सिर किसी के आगे नहीं झुकाऊगा ।अजयपाल को गुस्सा आ गया ।उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि---इसका सिर इस तरह से काटो कि वह मेरे पैरों में आ गिरे ।कप्पू चौहान ने चुपके से दो मुट्ठी रेत अपने मुंह में रख दी ।जैसे ही सैनिकों ने उसकी गर्दन काटी उसने अपना सिर पीछे की ओर कर दिया ।सिर पीछे की ओर जा गिरा ,उसके मुंह की रेत अजयपाल के चेहरे पर जा गिरी ।यह दृश्य देखकर अजयपाल दंग रह गया ।कहने लगा---जीत तुम्हारी हुई ।मैं बुरी तरह से पराजित हुआ।मैंने अपने जीवन में बहुत सारे योद्धा देखें,लेकिन तुम्हारे समान वीर पराक्रमी स्वाभिमानी आज तक नहीं देखा ।मै अजयपाल तुम्हारी वीरता को हृदय से प्रणाम करता हूँ ,फिर राजा अजयपाल कप्पू चौहान की शवयात्रा में स्वयं पैदल गया ।अपने हाथों से चिता को अग्नि दी। इस प्रकार कप्पू चौहान भारतीय इतिहास में बीरता और मातृ भूमि के प्रति प्रेम के कारण सदा सदा के लिए अमर हो गया ।
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