अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
सच्चे साधक की पहचान---लेखक---अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल।स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने ही वाले थे ।जाने से पहले वेअपनी गुरु माता मां शारदा के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे ।वहां अन्य भक्त जन भी बैठे हुए थे ।माँ शारदा ने विवेकानंद को आशीर्वाद देने से पहले अन्दर से चाकू लाने के लिए कहा ।विवेकानंद अन्दर गये और चाकू ला करके मां शारदा को दिया ।इस पर मां शारदा गदगद हो गई ।मुक्त कंठ से कहने लगी कि मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।जाओ भारत माता तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है ।जगत गुरु के रूप में भारत की प्रतिष्ठा दिलाकर भारत का नाम रोशन करो ।इस तरह का दृश्य देखकर एक भक्त से रहा नहीं गया ।उस भक्त ने मां शारदा से कहा---आप हमेशा विवेकानंद की ही प्रशंसा करती हैं ।हमारे बडे कार्य भी आपको दिखाई नहीं देते ।इस समय विवेकानंद ने कौन सा इतना बडा कार्य कर दिया,जो आपने इतना बडा आशीर्वाद उसे दे दिया ।चाकू लाकर तो हम भी आपको दे सकते हैं ।मां शारदा ने कहा कि तुम भी जाओ और हमें चाकू दे दो।भक्त ने तुरंत चाकू उठाया और मां शारदा को दे दिया ।मां शारदा के चेहरे पर असन्तोष का भाव दिखाई देने लगा ।भक्त बडी विस्मय की मुद्रा में मां शारदा से प्रश्न करने लगा कि विवेकानंद के चाकू लाने और मेरे चाकू लाने में क्या अन्तर है?इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मां शारदा कहने लगी---विवेकानंद ने जब मुझे चाकू दिया,तो तेज धार वाला भाग अपने पास रखा,पीछे वाला भाग मुझे दिया ।तुमने तेज धार वाला भाग मुझे दिया और पीछे वाला भाग अपने पास रख दिया ।साधु संत हमेशा कष्ट में रहना चाहते हैं ।किसी को किसी तरह का कष्ट नहीं देते हैं ।तेज धार वाला भाग अपने पास रखने का अर्थ है कि समाज के हर कष्ट को अपने ऊपर लेना और दूसरे के कल्याण की कामना करना ।अब तुम ही बताओ कि यह कार्य विवेकानंद ने किया या तुमने ।भक्त को मां शारदा की बात समझ में आ गई ।कहने लगा कि वास्तव में विवेकानंद ने पात्रता सिद्ध करने के साथ ही अपने कार्य से आशीर्वाद की सार्थकता भी सिद्ध कर दी।
सच्चे साधक की पहचान---लेखक---अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल।स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने ही वाले थे ।जाने से पहले वेअपनी गुरु माता मां शारदा के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे ।वहां अन्य भक्त जन भी बैठे हुए थे ।माँ शारदा ने विवेकानंद को आशीर्वाद देने से पहले अन्दर से चाकू लाने के लिए कहा ।विवेकानंद अन्दर गये और चाकू ला करके मां शारदा को दिया ।इस पर मां शारदा गदगद हो गई ।मुक्त कंठ से कहने लगी कि मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।जाओ भारत माता तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है ।जगत गुरु के रूप में भारत की प्रतिष्ठा दिलाकर भारत का नाम रोशन करो ।इस तरह का दृश्य देखकर एक भक्त से रहा नहीं गया ।उस भक्त ने मां शारदा से कहा---आप हमेशा विवेकानंद की ही प्रशंसा करती हैं ।हमारे बडे कार्य भी आपको दिखाई नहीं देते ।इस समय विवेकानंद ने कौन सा इतना बडा कार्य कर दिया,जो आपने इतना बडा आशीर्वाद उसे दे दिया ।चाकू लाकर तो हम भी आपको दे सकते हैं ।मां शारदा ने कहा कि तुम भी जाओ और हमें चाकू दे दो।भक्त ने तुरंत चाकू उठाया और मां शारदा को दे दिया ।मां शारदा के चेहरे पर असन्तोष का भाव दिखाई देने लगा ।भक्त बडी विस्मय की मुद्रा में मां शारदा से प्रश्न करने लगा कि विवेकानंद के चाकू लाने और मेरे चाकू लाने में क्या अन्तर है?इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मां शारदा कहने लगी---विवेकानंद ने जब मुझे चाकू दिया,तो तेज धार वाला भाग अपने पास रखा,पीछे वाला भाग मुझे दिया ।तुमने तेज धार वाला भाग मुझे दिया और पीछे वाला भाग अपने पास रख दिया ।साधु संत हमेशा कष्ट में रहना चाहते हैं ।किसी को किसी तरह का कष्ट नहीं देते हैं ।तेज धार वाला भाग अपने पास रखने का अर्थ है कि समाज के हर कष्ट को अपने ऊपर लेना और दूसरे के कल्याण की कामना करना ।अब तुम ही बताओ कि यह कार्य विवेकानंद ने किया या तुमने ।भक्त को मां शारदा की बात समझ में आ गई ।कहने लगा कि वास्तव में विवेकानंद ने पात्रता सिद्ध करने के साथ ही अपने कार्य से आशीर्वाद की सार्थकता भी सिद्ध कर दी।
0 Comments:
Post a Comment