अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
श्रावण मास में सदाशिव के विभिन्न स्वरूपों का महात्म्य----अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक ।नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।श्रावण मास में सोमवार का दिन शिव भगवान का माना जाता है ।इसी मास में मां पार्वती ने शिव भगवान को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए शिव की कठोर तपस्या की।इस माह में की गई आराधना का फल अवश्य मिलता है ।शास्त्रों में इस तरह का वर्णन देखने को मिलता है कि श्रावण मास में यदि सोमवार अमावस्या का पर्व आता है ,तो उसके महात्म्य में और भी विशिष्टता आ जाती है । सोमवती अमावस्या मेंव्रत दान स्नान करने से महत्वपूर्ण फल की प्राप्ति होती है ।इस समय 20तारीख के सोमवार को इस तरह का अद्भुत संयोग बन रहा है।जैसा कि सभी जानते हैं कि शिव भगवान सामान्य भक्ति से भी मुंह मांगा वरदान दे देती है ।इस दिन शिव भगवान के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करने से मन एकाग्र हो जाता है । सारे रूके हुए कार्य पूर्ण हो जाते हैं ।भक्तों को चाहिए की विशुद्ध निश्चलता के साथ भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करें ।इस तरह से ध्यान करने से महामृत्युंजय के फल की प्राप्ति होती है । यदि कोई कन्या मंगली है,उसका कहीं रिश्ता नहीं हो रहा है ।ये शिव भगवान के विभिन्न स्वरुप रिश्ता जोडने में प्रभावकारी माना जाता है ।शिव भगवान के विभिन्न स्वरुप इस प्रकार से हैं--भगवान सदा शिव---जो रजोगुण का आश्रय लेकर संसार की सृष्टि करते हैं ।सत्वगुण से सम्पन्न हो सातों भुवनों का पोषण करते हैं ।तमोगुण से युक्त हो सबका संहार करते हैं ।उस परमतत्व शिव का हम ध्यान करते हैं ।वे ही सृष्टि काल में ब्रह्मा पालन के समय विष्णु और संहार काल में रूद्र नाम धारण करते हैं ।सात्विकता अपनाने से ही प्राप्त होते हैं । परमात्म प्रभु शिव---वेदान्त ग्रन्थों में जिन्हें एकमात्र परम पुरूष परमात्मा कहा गया है ।जिन्होंने सर्वत्र व्याप्त कर रखा है।योगीजन जिनका निरन्तर ध्यान करते रहते हैं ।भगवान शिव हम सभी का कल्याण करें । मंगलस्वरूप भगवान शिव--जिसकी कृपा पूर्ण चितवन बडी ही सुन्दर है।जिसका मुखारविंद मन्द मुस्कान की छटा से अत्यंत मनोहर दिखाई देता है ।जो चन्द्रमा की कला से परम उज्ज्वल है।जो तीनों तापो को शान्त करने में सक्षम है।वह तेज पुन्ज हम सबका मंगल करे। भगवान अर्धनारीश्वर---जो निर्विकार होते हुए भी अपनी माया से विराट विश्व का आकार धारण कर लेते हैं ।उन तेजोमय भगवान शंकर को जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वती से सुशोभित है।निरन्तर मेरा नमस्कार है। भगवान शंकर---जो सत्य मय हैं ।जिनका ऐश्वर्य त्रिकाल वाधित है।जो सत्य प्रिय एवं सत्य प्रदाता हैं ।ब्रह्मा विष्णु जिसकी स्तुति करते हैं ।स्वेच्छा नुसार शरीर धारण करने वाले उन भगवान शंकर की मैं वन्दना करता हूँ । गौरीपति भगवान शिव---जो विश्व की उत्पत्ति स्थिति और लय आदि के एकमात्र कारण है ।गौरी गिरीराज कुमारी उमा के पति हैं ।तत्वज्ञ हैं ।जिनकी कीर्ति का कहीं अन्त नहीं है ।जो माया का आश्रय लेकर भी उससे अत्यंत दूर है ।उन विमल वोध शिव भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ । महामहेश्वर ---चांदी के पर्वत के समान जिनकी श्वेत कान्ति है।जो सुन्दर चन्द्रमा को आभूषण रूप से धारण करते हैं ।रत्नमय अलंकारों से जिनका शरीर उज्ज्वल है 'उन परम दयालू महादेव जी का हम प्रतिदिन ध्यान करते हैं । पंचमुख शिव ---जो अपने हाथों में क्रमशः त्रिशूल 'परशू'तलवार 'वज्र'अग्नि ' नागराज 'घन्टा'अंकुश'पाश तथा अभय मुद्रा धारण किये हुए है।जो अनन्त कल्पवृक्ष के समान कल्याण कारी है ।उन सर्वेश्वर भगवान शंकर का ध्यान करना चाहिए । अम्बिकेश्वर --जिनके पांच मुख हैं ।जो खेल खेल में अनायास जगत की रचना ' पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पांच प्रबल कर्म करते रहते हैं ।उन सर्वश्रेष्ठ अजर अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान शंकर का मैं मन ही मन चिंतन करता हूँ । पार्वती नाथ भगवान पन्चानन--जिनके पांच मुख हैं तथा जिनका वर्ण स्फटिक के समान दिव्य प्रभा से आभाषित हो रहा है।उन पार्वती नाथ भगवान शंकर को मैं नमस्कार करताहूँ । भगवान महाकाल--चन्द्रमा की कला 'सर्पों के कंकड़ तथा व्यक्त चिन्ह वाले कपाल को धारण करते हैं ।सम्पूर्ण लोकों के आदिदेव उन भगवान महाकाल की जय हो। श्री नील कंठ---भगवान नीलकंठ दस हजार बाल सूर्यों के समान तेजस्वी है ।सिर पर जटाजूट ललाट पर अर्धचंद्र और माथे पर सांपो का मुकुट धारण किये हुए हैं ।चारों हाथो में जपमाला शूल नरकपाल और मुद्रा है।तीन नेत्र हैं ।पांच मुख है।अति सुन्दर विग्रह है।नीलकंठ देव का भजन करनाचाहिए । पशुपति--जिन्होंने अपने कर कमलों में त्रिशूल 'तलवार तथा शक्ति को धारण कर रखा है ।जिनके चार मुख तथा दाढे भयावह हैं ।ऐसे सर्वसमर्थ दिव्य रूप एवं अस्त्रों को धारण करने वाले पशुपति नाथ का ध्यान करना चाहिए । भगवान दक्षिण मूर्ति--सूर्य चन्द्रमा व अग्नि ये तीनों जिनके तीन नेत्र के रूप में स्थित है ।जो सनकादि एवम् शुकदेव आदि मुनियों से आवृत्त हैं ।वे भगवान भव शंकर आपके हृदय में विशुद्ध भावना प्रदान करें । महामृत्युंजय--जो अपने दो करकमलों में रखें हुए दो कलशो से जल निकालकर उनसे ऊपर वाले दो हाथों द्वारा अपने माथे को सींचते हैं ।अन्य दो हाथों में घडे लिए उन्हें अपने गोद में रखे हुए हैं तथा शेष दो हाथों में रूद्राक्ष एवम् मृगमुद्रा धारण करते हैं ।कमल के आसन पर बैठे हैं ।सिर पर स्थित चन्द्रमा से निरन्तर झरते हुए अमृत से जिसका शरीर भीगा हुआ है ।जो तीन नेत्र धारण करने वाले हैं ।उन भगवान मृत्युन्जय का जिनके साथ गिरिराज नंदनी उमा भी विराजमान है ।मैं उस प्रभु का चिंतन करता हूँ ।
श्रावण मास में सदाशिव के विभिन्न स्वरूपों का महात्म्य----अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक ।नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।श्रावण मास में सोमवार का दिन शिव भगवान का माना जाता है ।इसी मास में मां पार्वती ने शिव भगवान को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए शिव की कठोर तपस्या की।इस माह में की गई आराधना का फल अवश्य मिलता है ।शास्त्रों में इस तरह का वर्णन देखने को मिलता है कि श्रावण मास में यदि सोमवार अमावस्या का पर्व आता है ,तो उसके महात्म्य में और भी विशिष्टता आ जाती है । सोमवती अमावस्या मेंव्रत दान स्नान करने से महत्वपूर्ण फल की प्राप्ति होती है ।इस समय 20तारीख के सोमवार को इस तरह का अद्भुत संयोग बन रहा है।जैसा कि सभी जानते हैं कि शिव भगवान सामान्य भक्ति से भी मुंह मांगा वरदान दे देती है ।इस दिन शिव भगवान के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करने से मन एकाग्र हो जाता है । सारे रूके हुए कार्य पूर्ण हो जाते हैं ।भक्तों को चाहिए की विशुद्ध निश्चलता के साथ भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करें ।इस तरह से ध्यान करने से महामृत्युंजय के फल की प्राप्ति होती है । यदि कोई कन्या मंगली है,उसका कहीं रिश्ता नहीं हो रहा है ।ये शिव भगवान के विभिन्न स्वरुप रिश्ता जोडने में प्रभावकारी माना जाता है ।शिव भगवान के विभिन्न स्वरुप इस प्रकार से हैं--भगवान सदा शिव---जो रजोगुण का आश्रय लेकर संसार की सृष्टि करते हैं ।सत्वगुण से सम्पन्न हो सातों भुवनों का पोषण करते हैं ।तमोगुण से युक्त हो सबका संहार करते हैं ।उस परमतत्व शिव का हम ध्यान करते हैं ।वे ही सृष्टि काल में ब्रह्मा पालन के समय विष्णु और संहार काल में रूद्र नाम धारण करते हैं ।सात्विकता अपनाने से ही प्राप्त होते हैं । परमात्म प्रभु शिव---वेदान्त ग्रन्थों में जिन्हें एकमात्र परम पुरूष परमात्मा कहा गया है ।जिन्होंने सर्वत्र व्याप्त कर रखा है।योगीजन जिनका निरन्तर ध्यान करते रहते हैं ।भगवान शिव हम सभी का कल्याण करें । मंगलस्वरूप भगवान शिव--जिसकी कृपा पूर्ण चितवन बडी ही सुन्दर है।जिसका मुखारविंद मन्द मुस्कान की छटा से अत्यंत मनोहर दिखाई देता है ।जो चन्द्रमा की कला से परम उज्ज्वल है।जो तीनों तापो को शान्त करने में सक्षम है।वह तेज पुन्ज हम सबका मंगल करे। भगवान अर्धनारीश्वर---जो निर्विकार होते हुए भी अपनी माया से विराट विश्व का आकार धारण कर लेते हैं ।उन तेजोमय भगवान शंकर को जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वती से सुशोभित है।निरन्तर मेरा नमस्कार है। भगवान शंकर---जो सत्य मय हैं ।जिनका ऐश्वर्य त्रिकाल वाधित है।जो सत्य प्रिय एवं सत्य प्रदाता हैं ।ब्रह्मा विष्णु जिसकी स्तुति करते हैं ।स्वेच्छा नुसार शरीर धारण करने वाले उन भगवान शंकर की मैं वन्दना करता हूँ । गौरीपति भगवान शिव---जो विश्व की उत्पत्ति स्थिति और लय आदि के एकमात्र कारण है ।गौरी गिरीराज कुमारी उमा के पति हैं ।तत्वज्ञ हैं ।जिनकी कीर्ति का कहीं अन्त नहीं है ।जो माया का आश्रय लेकर भी उससे अत्यंत दूर है ।उन विमल वोध शिव भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ । महामहेश्वर ---चांदी के पर्वत के समान जिनकी श्वेत कान्ति है।जो सुन्दर चन्द्रमा को आभूषण रूप से धारण करते हैं ।रत्नमय अलंकारों से जिनका शरीर उज्ज्वल है 'उन परम दयालू महादेव जी का हम प्रतिदिन ध्यान करते हैं । पंचमुख शिव ---जो अपने हाथों में क्रमशः त्रिशूल 'परशू'तलवार 'वज्र'अग्नि ' नागराज 'घन्टा'अंकुश'पाश तथा अभय मुद्रा धारण किये हुए है।जो अनन्त कल्पवृक्ष के समान कल्याण कारी है ।उन सर्वेश्वर भगवान शंकर का ध्यान करना चाहिए । अम्बिकेश्वर --जिनके पांच मुख हैं ।जो खेल खेल में अनायास जगत की रचना ' पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पांच प्रबल कर्म करते रहते हैं ।उन सर्वश्रेष्ठ अजर अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान शंकर का मैं मन ही मन चिंतन करता हूँ । पार्वती नाथ भगवान पन्चानन--जिनके पांच मुख हैं तथा जिनका वर्ण स्फटिक के समान दिव्य प्रभा से आभाषित हो रहा है।उन पार्वती नाथ भगवान शंकर को मैं नमस्कार करताहूँ । भगवान महाकाल--चन्द्रमा की कला 'सर्पों के कंकड़ तथा व्यक्त चिन्ह वाले कपाल को धारण करते हैं ।सम्पूर्ण लोकों के आदिदेव उन भगवान महाकाल की जय हो। श्री नील कंठ---भगवान नीलकंठ दस हजार बाल सूर्यों के समान तेजस्वी है ।सिर पर जटाजूट ललाट पर अर्धचंद्र और माथे पर सांपो का मुकुट धारण किये हुए हैं ।चारों हाथो में जपमाला शूल नरकपाल और मुद्रा है।तीन नेत्र हैं ।पांच मुख है।अति सुन्दर विग्रह है।नीलकंठ देव का भजन करनाचाहिए । पशुपति--जिन्होंने अपने कर कमलों में त्रिशूल 'तलवार तथा शक्ति को धारण कर रखा है ।जिनके चार मुख तथा दाढे भयावह हैं ।ऐसे सर्वसमर्थ दिव्य रूप एवं अस्त्रों को धारण करने वाले पशुपति नाथ का ध्यान करना चाहिए । भगवान दक्षिण मूर्ति--सूर्य चन्द्रमा व अग्नि ये तीनों जिनके तीन नेत्र के रूप में स्थित है ।जो सनकादि एवम् शुकदेव आदि मुनियों से आवृत्त हैं ।वे भगवान भव शंकर आपके हृदय में विशुद्ध भावना प्रदान करें । महामृत्युंजय--जो अपने दो करकमलों में रखें हुए दो कलशो से जल निकालकर उनसे ऊपर वाले दो हाथों द्वारा अपने माथे को सींचते हैं ।अन्य दो हाथों में घडे लिए उन्हें अपने गोद में रखे हुए हैं तथा शेष दो हाथों में रूद्राक्ष एवम् मृगमुद्रा धारण करते हैं ।कमल के आसन पर बैठे हैं ।सिर पर स्थित चन्द्रमा से निरन्तर झरते हुए अमृत से जिसका शरीर भीगा हुआ है ।जो तीन नेत्र धारण करने वाले हैं ।उन भगवान मृत्युन्जय का जिनके साथ गिरिराज नंदनी उमा भी विराजमान है ।मैं उस प्रभु का चिंतन करता हूँ ।
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