कोरोना महामारी के चलते हुए शिक्षा की चुनौतियां----डाँक्टर सविता भन्डारी

अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
कोरोना महामारी के चलते हुए शिक्षा की चुनौतियां----डाँक्टर सविता भन्डारी ।प्रवक्ता-अर्थशास्त्र ।डी0फिल0।केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर पौडी गढवाल ।रा0इ0का0सुमाडी,जनपद-पौडी गढवाल ।वर्ष 2020ने अपने आगमन के साथ ही समूचे विश्व को कोरोना नामक महामारी के चपेट में ले लिया ।जिससे लाखों लोग इस बीमारी के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठे और बहुत से संक्रमित होकर दूसरों के लिए खतरे का कारक बन गये।महामारी के संक्रामक होने के कारण अपनी सुरक्षा हेतु विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं को  अस्थाई रूप से बन्द करना पडा। जिसे लांकडाउन कहा गया ।अर्थात आर्थिक,धार्मिक,सामाजिक,राजनैतिक,शैक्षिक गतिविधियाँ शून्य के कगार पर पहुंच गई ।यहां तक कि आवागमन एवम् यातायात,परिवहन सब पर रोक लग गई ।भारतीय अर्थव्यवस्था भी इन सबसे अछूती न रह सकी और हम सब भी इतिहास में पहली बार पूरे देश की  तालाबन्दी  होने के गवाह बन गये।                            सामाजिक  जीवन के नियमों व कायदों में भारी फेर बदल हो गये ।घर से बाहर मास्क लगाकर निकलना,सामाजिक दूरी रखना,शादी समारोह पर कई नियमों व शर्तों के साथ छूट दी गई।होटल रेस्तरां भी सख्त नियमों के साथ खुले,सिनेमा,पिकनिक,,सैर सपाटा आदि सब रूक गए ।हाथों को धोने की आदत और सैनिटाइजर का प्रयोग आम जिंदगी के अंग बन चुके हैं ।इस तरह हमें अपने जीवन के सामान कारोबार एक तरह से नये कलेवर में अपनाने को विवश होना पड़ा है।                                                    आर्थिक जगत के बाद सबसे ज्यादा हमारी भावी पीढ़ी प्रभावित हुई है क्योंकि नई परिस्थितियों में शैक्षिक संस्थाओं और इनकी नियमित क्रियाकलापों का संचालन अभी किसी  भी तरह से संभव नहीं दिखाई देता है ।कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि शैक्षिक गतिविधियों का सुचारु रूप से संचालित करना वास्तव में  हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है ।लाॅक डाउन की अवधि के दौरान  ऑन लाइन शिक्षण पद्धति एक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में हमने अपनाई है।हालांकि इसे हम शत् प्रतिशत सही व्यवस्था तो नहीं कह सकते परन्तु  सभय की आवश्यकता के अनुरूप यह कुछ नहीं से कुछ तो है।मानी जा सकती है ।                                                   ऑनलाइन शिक्षण पद्धति तो वास्तव में सामान्य शिक्षण व्यवस्था के  सहयोगी के रूप में प्रयुक्त होती है,ताकि शिक्षण व्यवस्था रोचक और व्यापक बन सकें ।चूंकि यह शिक्षण पद्धति पूर्ण रूप से व्यावहारिक नहीं है और देश के हर जगह लागू नहीं रही है ।इसलिए कई तरह की शिक्षण  से सम्बंधित समस्याएं उजागर हो रही हैऔर उनका समाधान करना हमारे सामने किसी चुनौती से कम नहीं है ।             ऑन लाइन शिक्षण हेतु एंड्राइड फोन,कम्प्यूटर व लैपटॉप सामान्य  आवश्यक गैजेट्स हैं जिनके बिना  शिक्षण संभव नहीं है ।अर्थात प्रत्येक विद्यार्थी के पास ये अवश्य होने चाहिए ,तभी वह ऑन लाइन शिक्षण से जुड़ पायेगा ।अब व्यावहारिक दृष्टिकोण से सोचा जाये तो सरकारी विद्यालयों उन विद्यार्थियों की संख्या अधिक है जो आर्थिक रूप से इतने सबल नहीं है कि वह इन महंगे  गैजेट्स को खरीद सकें या फिर डाटा आदि का खर्चा वहन कर सकें ।माना हाल फिलहाल विद्यार्थी व्यवस्था कर भी लेता है तो दूसरी परेशानी विद्युत आपूर्ति को ले कर है।शहरों में तो विद्युत की आपूर्ति ठीक  रहती है ,परन्तु ग्रामीण स्तर पर यह बाधित होती रहती है ।इसलिए ऑनलाइन शिक्षण का भी इससे प्रभावित होना स्वाभाविक सी बात है ।                       जहां तक उत्तराखंड की बात है,यह एक पहाड़ी राज्य है ।इसकी भौगोलिक संरचना के कारण निरन्तर नेटवर्क का बना रहना भी अपने आप में बहुत बडी समस्या है।बिना नेटवर्क के उपलब्धता के ऑन लाइन शिक्षण  व्यर्थ है ।इसलिए नेटवर्क की उपलब्धता ही इस शिक्षण व्यवस्था को सुचारू रूप से क्रियान्वित  करने में मदद कर  सकती है ।                                         ऑन लाइन शिक्षण व्यवस्था में  विद्यार्थी को लम्बी अवधि तक एन्ड्रोएड फोन या कम्प्यूटरके सामने रहने से उसकी ऑखों को सबसे ज्यादा क्षति पहुँचती है ।गर्दन ,पीठ व शरीर में अकडन आ जाती है,जिससे उसके सामान्य व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाना स्वाभाविक है ।शारीरिक गतिविधियों के अभाव में बच्चों का विकास व उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित होती है ।इस प्रकार विद्यालय का सामन्य माहौल ऑनलाइन शिक्षण द्वारा निर्मित किया जाना असम्भव है ।                                          तकनीकी स्तर पर सबसे बडी खराबी  यह है ऑनलाइन शिक्षण पद्धति के लिए अध्यापक पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं हैं,और कई विद्यालयों में तो स्मार्ट रूम उपलब्ध नहीं है ।सबसे बडी बात तो यह है कि इस शिक्षाण पद्धति हेतु एक व्यावहारिक और कारगर  माॅडल का होना अति आवश्यक है ।प्रत्येक  विदालय के पास इस हेतु एक सुदृढ़ संरचनात्मक व्यवस्था  होनी चाहिए,ताकि ऑनलाइन शिक्षण सही दिशा में बढ सके और अपने उद्देश्य पूरा करने में सफल हो सके।                     देश के शिक्षा विदों  एवम् बुद्धिजीवियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए वे एक व्यावहारिक शिक्षा प्रद शिक्षा नीति बनायें ,ताकि हमारे बच्चे स्वयं को शिक्षित करने की मुहिम में बढ चढ कर प्रतिभाग कर सकें  ।इस सन्दर्भ में कुछ सुझाव इस प्रकार से हैं---01-पाठ्यक्रम को केवल चार विषयों तक सीमित कर देना चाहिए ।हिन्दी,अंग्रेजी,विज्ञान व गणित पहली से दसवीं तक ताकि विद्यार्थी को अनावश्यक ऑनलाइन शिक्षण के तनाव से मुक्त किया जा सके ।सामाजिक विषय को विभिन्न भागों में विभाजित कर अन्य विषयों के साथ समाहित किया जाना चाहिए ।जैसे भूगोल को विज्ञान में,इतिहास को हिन्दी में कहानियों और नाटकों के रूप में,नागरिक शास्त्र की विषय वस्तु को अंग्रेजी विषय के साथ कहानी या निबन्धात्मक लेखों के रूप में संग्रहीत करना ।इस प्रकार विद्यार्थियों को अनावश्यक अतिरिक्त पाठ्यक्रम का बोझ उठाने के लिए विशश न होना पडे।हिन्दी के साथ संस्कृत को जोडा जाना चाहिए ।जिससे विद्यार्थियों में मनोवैज्ञानिक रूप से भी सिर्फ चार विषयों की पढाई के लिए ललक पैदा हो सके।            साथ ही पाठ्यक्रम को कम किया जाय और चित्रों व उदाहरणों से समझाने का ज्यादा प्रयास किया जाना चाहिए ।विज्ञान व भूगोल विषय में प्रकरणों से सम्बंधित ंचित्र बनाये जांय ताकि कला का भी अभ्यास हो सकें ।                         02--लंबे अभ्यासों और विस्तृत प्रश्नोंत्तरो के बजाय छोटे प्रश्न व महत्वपूर्ण विषयों पर बिन्दुवार नोट्स लिखायें जांय ताकि लम्बी अवधि तक ऑनलाइन पढाई से विद्यार्थियों को सिरदर्द,बेचैनी,ऑखों की थकान व मानसिक परेशानियों से बचाया जा सके ।गणित विषय में लंबी प्रश्नावालियों के स्थान पर एक ही तरह के प्रश्नों के लिए दो उदाहरण देकर उसी के आधार पर पुस्तक में दी गई विभिन्न आभास मालाओ को विद्यार्थी स्वयं खाली समय में कर सकते हैं ।इसी प्रकार अंग्रेजी व हिन्दी में व्याकरण के सिद्धांतों को लिखने की जगह विद्यार्थियो को वाषय या प्रकरण से सम्बंधित चार पांच वाक्य करायें जांय ताकि बाद में पुस्तकों में दी गई अभ्यास मालाओं को वह स्वयं कर सकें ।                             वास्तविकता यस है कि अब विद्यार्थियों के अन्दर हमें ''स्वयं पढने,खोजने की प्रवृत्ति '' को जागृत करने की शिक्षण पद्धति तैयार करनी होंगी ।पाठ्यक्रम की पुस्तकों में विषय से सम्बंधित ज्ञान समाहित होता है ।आवश्यकता पाठ को पूरा पढने और पाठ के अंत में दियेगये प्रश्नों को हल करने की प्रवृत्ति उत्पन्न करने की है ,ताकि पाठ को लेकर विद्यार्थी अपनी समझ को परख सकें ।इस प्रकार मौजूदा समय में विद्यार्थियों को स्वयं से पूरा पाठ पढने और प्रश्नों के उत्तर खोजने की  जिज्ञासा उत्पन्न करने की विधियां ईजाद करनी होंगी ।स्वयं शिक्षकों को भी प्रयास करने पडेंगे ।मनोवैज्ञानिक पहलू को अपनाकर विद्यार्थियों का मार्ग दर्शन करना होगा ।जो विद्यार्थी पूरा पाठ पढने के उपरान्त प्रश्नोत्तर लिखकर उन्हें भेजें,उन्हें वे शावाशी व लाइक से सम्बंधित चिन्ह प्रेषित कर उनका उत्साह वर्धन कर सकते हैं ।इससे अन्य विद्यार्थियोंको भी प्रेरित किया जा सकता है।                                    वर्तमान समय में हमारे राष्ट्रीय  शैक्षिक अनुसंधान एवं  प्रशिक्षण परिषद् की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे शिक्षण के ऑनलाइन व्यवस्था के अनुरूप नया पाठ्यक्रम व परीक्षा के नये तरीके ईजाद करें ।ऑनलाइन परीक्षा हेतु प्रश्न पत्र इस तरह से तैयार करें कि जिसमें  नकल की नहीं अपितु अक्ल के साथ तार्किक विधि से प्रश्नों को हल किया जा  सके ।                         वर्चुअल क्लासेज को अधिक उपयोगी व व्यवहारिक बनाने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए ।ऑनलाइन शिक्षण की कमजोरियाँ  जैसे-पढाई का एकसार , बोझिल होना ,लम्बी अवधि की पढाई से सिर दर्द,आंखों में दिक्कत होना ।इन कमियों को दूर कर शिक्षण को रोचक,मनोरंजक व सही अर्थों में शिक्षाप्रद बनाये जाने के प्रयास किए जाने चाहिए ।कठिन एवं विस्तृत प्रकरणो को छोटा कर  सरल भाषा में  ज्यादा व्यावहारिक बनाने की दिशा में ठोस क़दम उठाने की आवश्यकता है।                                 हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय  द्वारा ऑनलाइन शिक्षण की व्यावहारिक कठिनाइयों को देखते हुए विद्यार्थियों के लिए इस शिक्षण पद्धति के अन्तर्गत शिक्षण अवधि तय की गई ,और दिशा निर्देश ''प्रज्ञाता '' नाम से जारी किए गयें हैं ।इसमें निर्देशित किया गया कि प्री नर्सरी के विद्यार्थियों के लिए दिन में 30-35 मिनट की ऑन लाइन कक्षा  पर्याप्त है।पहली से आठवीं तक की कक्षा के लिए दिन में 40-45मिनट की दो कक्षाओं  से अधिक नहीं होगी ,और नवीं से  बारहवीं तक30-45मिनट चार कक्षाओं से अधिक नहीं होगी ।हम सरकार की इस पहल का स्वागत करते हैं ।             
   यह सरकार द्वारा उठाया गया सराहनीय कदम है।हम सरकार से     भविष्य में विद्यार्थियों के हितों को
देखते हुए ऑनलाइन शिक्षण की चुनौतियों को स॔ज्ञान में लेते हुए सरकार से और नये नीति-निर्देशों की अपेक्षा कर सकतै हैं ,ताकि हमारी भावी पीढ़ी विषम से विषम परिस्थितियों में भी अपना पठन पाठन जारी रख सकें और तमसो मां ज्योतिर्गमय को चरितार्थ कर सकें ।
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