ब्यूरो चीफ : हर्ष सिंघल ( देहरादून)
हरिद्वार में हर 12 वर्ष बाद कुंभ और छह वर्ष बाद अर्धकुंभ लगता है। आस्था पर्वों ने धर्मनगरी को 60 स्थायी पुल दिए हैं। इसीलिए कुंभ नगरी को पुलों की नगरी भी कहा जाता है। कुंभ मेलों के दौरान अनेक अस्थायी पुल भी बनाए जाते हैं, जिन्हें स्नान पर्व के बाद हटा दिया जाता है। नए बन रहे चार पुलों को मिलाकर कुंभनगरी में गंगा पर 60 पुल हो गए हैं। 1950 के कुंभ तक गंगा और नीलधारा के उस पार जाने के लिए एक भी पुल नहीं था। मायापुर में एक पुल अंग्रेजों का बनवाया था, जो हरिद्वार से कानपुर तक जा रही गंगा नहर का पहला पुल था, लेकिन यह पुल डामकोठी जाने के ही काम आता था, जहां अंग्रेज अधिकारी ठहरा करते थे। कुंभ मेलों पर उस समय उल्टी नावों पर पुल बनाए जाते थे, जिन्हें कुंभ मेले के बाद तोड़ दिया जाता था। 1956 में नहर की शताब्दी पर गंगा पर पहला पुल गऊ घाट से रोड़ी मैदान तक बना। तब हरकी पैड़ी पर घंटाघर टापू जाने के लिए दो आर्च पुल मौजूद थे। टापू का विस्तार होने पर एक और आर्च पुल बनाया गया। इसके बाद तो पुल ही पुल बनते चले गए। विशाल नीलधारा पर 1974 के कुंभ में पौन किलोमीटर लंबा चंडीघाट पुल बनाया गया। ललतारौ पुल, पंतदीप पुल, जयराम पुल आदि बनने से कुंभ को गंगा पार ले जाने में मदद मिली। नीलधारा के उस पर गंगा में आकर मिलने वाले रपटों पर भी सात पुल एक साथ बनाए गए। पुलों की नगरी में पुलों की संख्या अब 60 हो गई है। हरकी पैड़ी पर ही इस समय 10 पुल हैं। आने वाले प्रत्येक कुंभ पर पुलों की संख्या बढ़ती ही चली जाएगी।
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