अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
बच्चों ने कार्टून के बचाए खूब देखी रामायण और महाभारत
132 सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों में किया गया सर्वेक्षण
कोविड 19 संक्रमण के प्रभाव के चलते देश में लाक डाउन के दौरान सभी तरह की गतिविधियों पर रोक लगी। व्यवसायिक प्रतिष्ठान ,सरकारी कार्यालयों के अलावा सभी शिक्षण संस्थान भी बंद हैं।
शैक्षणिक गतिविधि बंद होने के चलते स्कूली छात्रों को घर के अंदर ही रहने को मजबूर होना पड़ा है। खासकर 7 से 14 वर्ष आयु के बच्चों को 24 घंटे घर में रखना किसी चुनौती से कम नहीं है , लेकिन लाग डाउन के कारण बच्चों को घर की चाहरदीवारी के अंदर रहने को मजबूर होना पड़ा है।
इस दौरान बच्चों की घर के अंदर की क्या गतिविधियां रही और उन्होंने इस समय का उपयोग किस तरह से किया । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए "कोविड 19 संक्रमण का स्कूली छात्रों पर प्रभाव एक अध्ययन : उत्तराखंड राज्य के विशेष संदर्भ में " शीर्षक से शोध कार्य किया। इसमें 10 प्रश्नों की एक प्रश्नावली तैयार की गई। सात से 14 वर्ष की आयु की स्कूली बच्चों की अभिरुचि जानने का प्रयास किया गया। राज्य के 13 जनपदों के 132 सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों के 1428 छात्र छात्राओं ने प्रश्नावली भरी। इसमें श्रीनगर के सेंट थेरेसा ,रूद्रप्रयाग के माता गोविन्द गिरी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज व सीमांत जनपद पिथौरागढ़, मुन्सयारी के विवेकानंद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के छात्रों से मास सैपलिंग( बड़े पैमाने पर नमूने भरवाना) करवाई गई।
इस शोध अध्ययन का निष्कर्ष यह निकला कि बच्चों ने इस दौरान टेलीविजन देखा ,इंडोर गेम और शतरंज खेला एवं अपने पसंदीदा सीरियल और कार्टून शो नेटवर्क को भी देखा। हमारा शोध का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला कि भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मार्च के अंतिम सप्ताह से अप्रैल माह पर्यंत रामानंद सागर कृत रामायण का प्रसारण एक महत्वपूर्ण पहल रही , जिसको 130 स्कूलों के 85% बच्चों ने देखा । इसके अलावा इस शोध निष्कर्ष से यह तथ्यभी सामने आया कि बच्चों ने अपने पसंदीदा कार्टून शो के बजाय रामायण के प्रसारण को वरीयता दी । इतना ही नहीं बच्चों ने कार्टून नेटवर्क में प्रसारित होने वाले पोगो, कार्टून नेटवर्क आदि के बजाय दूरदर्शन के चैनलों पर प्रसारित रामायण व महाभारत को देखना ज्यादा पसंद किया। शोध अध्ययन में शामिल 55 फीसद छात्रों ने रामायण महाभारत का प्रसारण देखा, जबकि पिछले एक माह में कार्टून नेटवर्क देखने वाले छात्रों का प्रतिशत 35 रहा ,इसके अलावा न्यूज़ चैनल व अन्य चैनल देखने वालों का प्रतिशत दस से भी कम रहा ।
अक्सर परिजनों की यह शिकायत रहती है कि बच्चे मोबाइल फोन का उपयोग ज्यादा करते हैं , लेकिन शोध अध्ययन के दौरान पूछे गए सवाल के जवाब में बच्चों ने स्वीकार किया कि वे मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं ।और मोबाइल फोन का उपयोग करने वाले बच्चों की कुल तादाद 90 फीसद रही। लेकिन मोबाइल फोन का उपयोग पढ़ाई के लिए किया।
कुल मिलाकर शोध अध्ययन का यह निष्कर्ष निकला कि लाकडाउन के दौरान रामायण व महाभारत का प्रसारण बच्चों के लिए मनोरंजन का नया माध्यम रहा। निश्चित रूप से यह बात साफ होती है कि यदि बच्चों को मनोरंजन के नए एवं रोचक साधन उपलब्ध कराए जाएं तो वे उत्साह से देखना पसंद करेगें।
निष्कर्ष
शोध अध्ययन से निकले निष्कर्षों के आधार पर निम्नांकित सुझाव केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री व राज्य के शिक्षा मंत्री को प्रेषित किए जाएंगे ताकि भविष्य में रामायण एवं महाभारत के महत्वपूर्ण प्रसंगों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सके। शोध अध्ययन में निकले निष्कर्ष के आधार पर हमारा मानना है कि जूनियर हाईस्कूल स्तर तक रामायण एवं महाभारत के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को हिंदी एवं अंग्रेजी विषयों में छात्रों को बढ़ाया जाना चाहिए । रामायण और महाभारत के चरित्र एवं महापुरुषों को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का लाभ यह होगा कि छात्रों को, जीवन जीने की शैली गुरुकुल शिक्षा पद्धति, गुरु शिष्य परंपरा, प्रकृति एवं पर्यावरणीय शिक्षा, रचनात्मक समाज के निर्माण में सहयोग, नैतिक जीवन में आदर्श व मूल्य स्थापित करने में मददगार साबित हो सकता है।
अनादिकालीन भारतीय शिक्षा पद्धति सभी धर्मों के लिए अनुकरणीय थी। बीच का काल संक्रमण काल रहा ।इस दौर में मुस्लिमों और बाद में अंग्रेजों ने इसके स्वरूप में बदलाव कर दिया ।
वर्तमान में भी इसका प्रभाव हमारी शिक्षा पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है । लॉर्ड मैकाले ने 1813 के घोषणा पत्र की धारा 340 की आख्या बहुत चालाकी से कर ,भारत में पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन तथा प्रसार का रास्ता साफ किया । वह भारत में पाश्चात्य शिक्षा देने का समर्थक था । उसी के प्रतिवेदन पर लॉर्ड विलियम बेंटिंग की स्वीकृति तथा लॉर्ड ऑकलैंड की शिक्षा नीति का भारतीय जनमानस पर प्रभाव वर्तमान में भी दिखाई देता है ।
डॉ बृजेश सती का कहना है कि वर्तमान में शिक्षा का जबरदस्त वजारीकरण हो गया है। गुणात्मक शिक्षा दूर की कौड़ी जान पड़ती है। शिक्षा में सुधार लाना है तो उसके लिए हमें अपनी शिक्षा पद्धति में गुणात्मक सुधार लाना होगा। उनका मानना है कि सरकारी व गैर सरकारी स्कूल के बीच की बढ़ती खाई पाटने के लिए भी जरूरी कदम उठाने होंगे। इसके लिए आवश्यक है, एक पाठ्यक्रम हो या एक रुपता होनी चाहिए।
बच्चों ने कार्टून के बचाए खूब देखी रामायण और महाभारत
132 सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों में किया गया सर्वेक्षण
कोविड 19 संक्रमण के प्रभाव के चलते देश में लाक डाउन के दौरान सभी तरह की गतिविधियों पर रोक लगी। व्यवसायिक प्रतिष्ठान ,सरकारी कार्यालयों के अलावा सभी शिक्षण संस्थान भी बंद हैं।
शैक्षणिक गतिविधि बंद होने के चलते स्कूली छात्रों को घर के अंदर ही रहने को मजबूर होना पड़ा है। खासकर 7 से 14 वर्ष आयु के बच्चों को 24 घंटे घर में रखना किसी चुनौती से कम नहीं है , लेकिन लाग डाउन के कारण बच्चों को घर की चाहरदीवारी के अंदर रहने को मजबूर होना पड़ा है।
इस दौरान बच्चों की घर के अंदर की क्या गतिविधियां रही और उन्होंने इस समय का उपयोग किस तरह से किया । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए "कोविड 19 संक्रमण का स्कूली छात्रों पर प्रभाव एक अध्ययन : उत्तराखंड राज्य के विशेष संदर्भ में " शीर्षक से शोध कार्य किया। इसमें 10 प्रश्नों की एक प्रश्नावली तैयार की गई। सात से 14 वर्ष की आयु की स्कूली बच्चों की अभिरुचि जानने का प्रयास किया गया। राज्य के 13 जनपदों के 132 सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों के 1428 छात्र छात्राओं ने प्रश्नावली भरी। इसमें श्रीनगर के सेंट थेरेसा ,रूद्रप्रयाग के माता गोविन्द गिरी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज व सीमांत जनपद पिथौरागढ़, मुन्सयारी के विवेकानंद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के छात्रों से मास सैपलिंग( बड़े पैमाने पर नमूने भरवाना) करवाई गई।
इस शोध अध्ययन का निष्कर्ष यह निकला कि बच्चों ने इस दौरान टेलीविजन देखा ,इंडोर गेम और शतरंज खेला एवं अपने पसंदीदा सीरियल और कार्टून शो नेटवर्क को भी देखा। हमारा शोध का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला कि भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मार्च के अंतिम सप्ताह से अप्रैल माह पर्यंत रामानंद सागर कृत रामायण का प्रसारण एक महत्वपूर्ण पहल रही , जिसको 130 स्कूलों के 85% बच्चों ने देखा । इसके अलावा इस शोध निष्कर्ष से यह तथ्यभी सामने आया कि बच्चों ने अपने पसंदीदा कार्टून शो के बजाय रामायण के प्रसारण को वरीयता दी । इतना ही नहीं बच्चों ने कार्टून नेटवर्क में प्रसारित होने वाले पोगो, कार्टून नेटवर्क आदि के बजाय दूरदर्शन के चैनलों पर प्रसारित रामायण व महाभारत को देखना ज्यादा पसंद किया। शोध अध्ययन में शामिल 55 फीसद छात्रों ने रामायण महाभारत का प्रसारण देखा, जबकि पिछले एक माह में कार्टून नेटवर्क देखने वाले छात्रों का प्रतिशत 35 रहा ,इसके अलावा न्यूज़ चैनल व अन्य चैनल देखने वालों का प्रतिशत दस से भी कम रहा ।
अक्सर परिजनों की यह शिकायत रहती है कि बच्चे मोबाइल फोन का उपयोग ज्यादा करते हैं , लेकिन शोध अध्ययन के दौरान पूछे गए सवाल के जवाब में बच्चों ने स्वीकार किया कि वे मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं ।और मोबाइल फोन का उपयोग करने वाले बच्चों की कुल तादाद 90 फीसद रही। लेकिन मोबाइल फोन का उपयोग पढ़ाई के लिए किया।
कुल मिलाकर शोध अध्ययन का यह निष्कर्ष निकला कि लाकडाउन के दौरान रामायण व महाभारत का प्रसारण बच्चों के लिए मनोरंजन का नया माध्यम रहा। निश्चित रूप से यह बात साफ होती है कि यदि बच्चों को मनोरंजन के नए एवं रोचक साधन उपलब्ध कराए जाएं तो वे उत्साह से देखना पसंद करेगें।
निष्कर्ष
शोध अध्ययन से निकले निष्कर्षों के आधार पर निम्नांकित सुझाव केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री व राज्य के शिक्षा मंत्री को प्रेषित किए जाएंगे ताकि भविष्य में रामायण एवं महाभारत के महत्वपूर्ण प्रसंगों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सके। शोध अध्ययन में निकले निष्कर्ष के आधार पर हमारा मानना है कि जूनियर हाईस्कूल स्तर तक रामायण एवं महाभारत के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को हिंदी एवं अंग्रेजी विषयों में छात्रों को बढ़ाया जाना चाहिए । रामायण और महाभारत के चरित्र एवं महापुरुषों को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का लाभ यह होगा कि छात्रों को, जीवन जीने की शैली गुरुकुल शिक्षा पद्धति, गुरु शिष्य परंपरा, प्रकृति एवं पर्यावरणीय शिक्षा, रचनात्मक समाज के निर्माण में सहयोग, नैतिक जीवन में आदर्श व मूल्य स्थापित करने में मददगार साबित हो सकता है।
अनादिकालीन भारतीय शिक्षा पद्धति सभी धर्मों के लिए अनुकरणीय थी। बीच का काल संक्रमण काल रहा ।इस दौर में मुस्लिमों और बाद में अंग्रेजों ने इसके स्वरूप में बदलाव कर दिया ।
वर्तमान में भी इसका प्रभाव हमारी शिक्षा पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है । लॉर्ड मैकाले ने 1813 के घोषणा पत्र की धारा 340 की आख्या बहुत चालाकी से कर ,भारत में पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन तथा प्रसार का रास्ता साफ किया । वह भारत में पाश्चात्य शिक्षा देने का समर्थक था । उसी के प्रतिवेदन पर लॉर्ड विलियम बेंटिंग की स्वीकृति तथा लॉर्ड ऑकलैंड की शिक्षा नीति का भारतीय जनमानस पर प्रभाव वर्तमान में भी दिखाई देता है ।
डॉ बृजेश सती का कहना है कि वर्तमान में शिक्षा का जबरदस्त वजारीकरण हो गया है। गुणात्मक शिक्षा दूर की कौड़ी जान पड़ती है। शिक्षा में सुधार लाना है तो उसके लिए हमें अपनी शिक्षा पद्धति में गुणात्मक सुधार लाना होगा। उनका मानना है कि सरकारी व गैर सरकारी स्कूल के बीच की बढ़ती खाई पाटने के लिए भी जरूरी कदम उठाने होंगे। इसके लिए आवश्यक है, एक पाठ्यक्रम हो या एक रुपता होनी चाहिए।
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