युवा क्रान्ति वीर गढवाल का भगत सिंह ''श्री देव सुमन'' --लेखक अखिलेश चन्द्र चमोला ।

अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड

युवा क्रान्ति वीर गढवाल का भगत सिंह ''श्री देव सुमन'' --लेखक अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक विजेता ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित ।हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।  महापुरुष युग की मांग होते हैं ।युग को अपने विचारों से प्रभावित  करके समाज में नवीन चेतना का संचार पैदा करते हैं ।अधर्म अन्याय अत्याचार का विरोध करके जन समाज में नैतिक मूल्यों  की स्थापना करते हैं ।इस सन्दर्भ में श्री कृष्ण ने गीता में यह उदघोष किया-'जब भी ,जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है ।तब तब मैं अवतार लेता हूं ।ऐसा लगता है कि श्री देव सुमन भी इसी तरह से अधर्म ,अन्याय,अत्याचार का विरोध करने के लिए इस धरा पर देवदूत के रूप में अवतरित हुए ।इस दिव्य विभूति का अवतरण 25मई सन् 1916 में टिहरी जनपद के जौल नामक ग्राम में हुआ था।पिता का नाम हरिराम बडौनी तथा माता का नाम तारा देवी था।इनके दो भाई थे ।जिनका नाम परशुराम व कमल नयन था।पिताजी बहुत बड़े समाज सेवी थे।उनके जीवन का एकमात्र ध्येय बहुजन हिताय तथा बहुजन सुखाय था।उस समय वे प्रसिद्ध वैद्य के रूप में जाने जाते थे।अचानक उस क्षेत्र में हैजा फैल गई।हरिराम बडौनी पैदल चल कर  रोगियों के हाल-चाल पूछते ।समयानुसार उनका चिकित्सकीय उपचार करते ।लेकिन नियति की ऐसी विडम्बना रही कि खुद भी इस रोग से ग्रसित होकर पंचतत्व में विलीन हो गये ।उनकी माता तारा देवी पर सम्पूर्ण परिवार के दायित्व का भार आ पडा ।माता जी ने बडे धैर्य व संयम पूर्वक अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन बडे ही समुचित रूप से किया ।     श्री देव सुमन की शुरूवाती शिक्षा दीक्षा चम्बा में हुई ।चम्बा से जूनियर हाई स्कूल की परीक्षा सर्वोच्च अंको में उत्तीर्ण की ।उसके बाद सुमन देहरादून आ बसे।वहीं पर किसी विद्यालय में अध्यापन का कार्य करने लगे।साथ ही  अपना अध्ययन भी जारी रखा ।रत्न भूषण प्रभाकर ,साहित्य रत्न आदि विशिष्ट उपाधियाँ प्राप्त की।'22वर्ष की अवस्था में कविता संग्रह सुमन सौरभ प्रकाशित किया ।पत्र पत्रिका के क्षेत्र में भी इनका अतुलनीय योगदान रहा ।श्री देव सुमन मात्र 13-14वर्ष के ही थे।उस समय देहरादून में गांधी जी के असहयोग आन्दोलन की धूम मची हुई थी ।सुमन भी उसमें शामिल हो गये ।जहां ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध जमकर नारेबाजी की जा रही थी।नारे बाजी सुनकर पुलिस की फौज आ गई।पूरे समूह पर लाठीचार्ज करने लगी।समूह के सारे लोग इधर उधर भागने लगे ।पर श्री देव सुमन नहीं भागे ।श्री देव सुमन के साहस और निर्भीकता को देखते हुए पुलिस हतप्रभ रह गई।इतना छोटा बच्चा बडे ही स्वाभिमान और निर्भीकता के साथ अकेले लडने को तैयार है।पुलिस ने बच्चा समझ कर श्री देव सुमन को भागने का अवसर दिया ।लेकिन वे अपने स्थान से टस से मस नहीं हुए ।फिर पुलिस ने उन्हें पकडकर  15दिन तक जेल में रखा ।            श्री देव सुमन में  देश भक्ति का भाव कूट कूट कर भरा हुआ था।आन्दोलन को गति देने व जनता को जागरूक करने के लिए पत्र कारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया ।हिन्दू व धर्म राज्य नामक पत्रिका का भी सम्पादन किया ।टिहरी की दुर्दशा को देखकर ''गढ़देश सेवा संघ''की स्थापना की ।टिहरी रियासत के द्वारा जनता पर तरह तरह के कर लगाये जाते थे ।जैसे देव खेण,सौणी सेर,स्यूदी सूप आदि ।श्री देव सुमन ने इन सभी करों का विरोध किया ।                   आम जन मानस की बैठक बुलाई गई ।अपने अधिकारों के प्रति जनता को जागरूक किया गया।23जनवरी 1939ई0को देहरादून में ''टिहरी प्रजामंडल ''की स्थापना की गई ।टिहरी की स्थिति के बारे में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प0जवाहर लाल नेहरु को अवगत कराया गया ।धीरे-धीरे उनका सम्पर्क देश के बडे बडे नेताओं के साथ होने लगा।उन्होंने जनता के बीच जाकर यह घोषणा की-''एक भी व्यक्ति अपने आदर्श पर कायम रहेगा,तो वह भीप्रजा मन्डल के असली उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करेगा ।हम गुप्त समितियों  और  छिपे तरीकों में कतई यकीन नहीं करते ।मेरा तो विश्वास है कि यदि हमें मरना ही है  तो अपने सिद्धांतों और विश्वास की घोषणा करते हुए मरना श्रेयस्कर है।   सुमन की लोकप्रियता बढने लगी।जिस गाँव में गये,वही ग्रामीण जनता केद्वारा उनका भव्य सम्मान किया गया ।उनकी इस तरह की लोकप्रियता को देखकर टिहरी के राजा तथा कर्मचारी घबराने लगे।उन्हें नौकरी का प्रलोभन दिया गया ।सुमन ने इस तरह का प्रलोभन ठुकरा दिया ।फलस्वरूप उन्हें 29अगस्त 1942को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया ।तरह तरह की यातनाये दी गई।उन्हें कड़े शब्दों में  यह आदेश दिया गया कि---टिहरी प्रजामंडल को छोड़कर अन्य मांगो की सुनवाई की जायेगी ।।सुमन अपने बिचारों पर अडिग रहे ।सुमन ने इस तरह का सुझाव दिया---मेरा राजा से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं है,मैं चाहता हूँ कि उनके मार्गदर्शन में ही  प्रजा मन्डल की स्थापना हो।जनता को बैठक करने तथा भाषण देने की स्वतंत्रता प्राप्त हो ।आवश्यक मुकदमों की सुनवाई राजा स्वयं करें ।सामन्त शाही पर इस तरह के सुझाव का बुरा असर पडा ।सुमन को जेल में अनेक प्रकार के कष्ट देने के साथ परिवार वालों के साथ भी बडा बुरा व्यवहार किया गया ।इनके बडे भाई परशुराम बडौनी को भी कारावास में डाल दिया ।श्री देव सुमन को जेल में नजर बंद रखा गया । देहरादून से आगरा जेल भेज दिया गया ।सुमन ने हाईकोर्ट में अपील की कि उन्हें टिहरी राज्य की जेल में ही रखा जाय ।परन्तु उनकी अपील को अनसुना कर दिया गया।19नवम्बर 1943को श्री देव सुमन जेल से मुक्त हुए ।जैसे ही सुमन ने टिहरी में  प्रवेश किया,तो शुभचिंतकों ने एक बैठक आहूत की।जिसमें टिहरी राज्य की भीषण स्थिति से श्री देव सुमन को अवगत कराया ।साथ में यह सलाह भी दी कि आपके जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा है ।आपको सावधान रहने की आवश्यकता है ।इस पूरे घटनाक्रम को सुनकर श्री देव सुमन कहने लगे-मेरा कार्य क्षेत्र टिहरी में है ।मेरे शरीर के एक रक्त की बूँद टिहरी के  निवासियों के काम आयेगी ।मै रहूँ या न रहू लेकिन टिहरी राज्य के नागरिक अधिकारों को सामन्ती शासन के पन्जे से नहीं कुचलने दूंगा ।             अन्त में 3मई1944 को सुमन ने जेल में ही आरण अनशन शुरू कर दिया ।उनकी हर सुबिधा पर प्रतिबंध लगा दिया गया ।उन्हें पीने के लिए पानी भी नहीं दिया गया ।इस प्रकार भूख प्यास से तडपते हुए अनशन के 84वें दिन25जुलाई 1944को यह सूर्य सदा सदा के लिए अस्त हो गया।आधी रात को श्री देव सुमन के शव को कम्बल में लपेटकर भिलंगना नदी में फेंक दिया ।मृत्यु की सूचना परिवार वालों को नहीं दी गई ।उस समय के ग्रन्थों में इस तरह का विवरण भी देखने को मिलता है कि सुमन की मृत्यु की सूचना फर जनरल मिनिस्टर मौलीचन्द्र शर्मा ने अपने पद से त्याग पत्र देते हुए कहा कि---द्रौपदी के आंसुओं ने अत्याचारी कौंरबो के अत्याचार का अन्त किया था ।29वर्षीय विधवा विनय लक्ष्मी के आंसू  टिहरी के अत्याचारियों का अन्त करेंगे । अन्ततः सामन्त शाही का खात्मा हुआ ।अगस्त 1949को टिहरी रियासत ''भारत स॓घ में  विलीन हो गई। श्री देव सुमन ने अपनी डायरी में लिखा था--जिस राज्य की नीति अन्याय,अत्याचार व स्वेच्छा चारिता पर आधारित हो ।उनके विरुद्ध विद्रोह करना प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य है ।यही मैंने भी किया है ।शरीर के दम रहते हुए मैं बराबर यही करता रहूँगा ।अंतरात्मा की यही आवाज है।प0जवाहर लाल नेहरु ने श्री देव सुमन के सन्दर्भ में कहा---सुमन ने साहस और त्याग का जो आदर्श उपस्थित किया,वह चिरकाल तक लोगों को याद रहेगा ' और देशी राज्यों की जनता को अनुप्रणित करता रहेगा ।डा0पट्टा भि सीता रमैय्या के शब्दों में---युवा सुमन उन फूलों में से एक थे ' जो बिना देखे मुरझा जाने के लिए तैयार रहते हैं ।लेकिन वे अपने पीछे अपनी सुगन्ध की छाप छोड़ देते हैं ।सुमन ने जिस तरह का त्याग किया है 'उस तरह के त्याग की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है ।इन्होंने इतिहास रच कर नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है ।जो युग युगों तक स्वर्णिम अक्षरों में  अंकित रहेगा ।
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