कला निष्णात-स्वर्ण पदक प्राप्त राज्य पाल पुरस्कार से सम्मानित अखिलेश चंद्र चमोला के अभिव्यक्ति न्यूज से साक्षात्कार

अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड 
चिन्ता मुक्त जीवन------चिन्ता जीवन की सबसे बड़ी शत्रु के रूप में उभर कर सामने आती है ।यदि यह कहा जाए कि चिंता ही  चिता का साक्षात रूप है'तो किसी तरह की अन्योक्ति नहीं होगी ।अनावश्यक रूप से चिंता करना नकारात्मकता के भाव को दर्शाता है ।फलस्वरूप जीवन की सम्पूर्ण शक्ति नष्ट हो जाती है ।इसी आधार पर महात्मा विदुर ने चिंता के सन्दर्भ में कहा है----अधिक चिंता चिता के समान है ।यह हर क्षण शरीर को जलाती है ।इसलिए चिन्ता न करके हर स्थिति में धीरज धारण करना चाहिए ।                                          आजकल आगे बढने की होड भी चिन्ता का मुख्य कारण है ।जिसके कारण व्यक्ति उलझनों में उलझ जाता है ।उसे समाधान नहीं मिल पाता ।महात्मा गाँधी जी ने कहा-----चिन्ता इतनी बढ जाय कि वह शरीर को ही खाने लगे,तो यह अवान्छनीय हो जाता है,क्योंकि फिर तो यह अपने ही ध्येय को ही हरा बैठती है ।चिंता करने वाला व्यक्ति अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील तथा भावुक होता है ।जब आप किसी अप्रत्याशित घटना के बारे में कल्पना करते हैं ।उसके बारे में बार बार सोचते हैं और उससे घटित होने की प्रबल संभावना को   देखने लगते हैं ।तब आप चिन्ता के रोगी अथवा शिकार हो चुके होते हैं ।बार बार किसी अप्रिय घटना के बारे में सोच समझ कर चिंन्ता करने से वे घटनाएं सच हो जाती हैं ।जो घटना नहीं होने वाली है फिर भी उसकी चिन्ता करना उसे घबराहट कहतै हैं ।          चिन्ता के कारण-----1-कार्य का योजना बद्व तरीके से न करना 2-कमजोर इच्छा शक्ति 3-स्वयं  पर प्रभाव--चिन्ता करने से सम्पूर्ण शरीर पर कुप्रभाव पडता है ।जिनमें सबसे ज्यादा इनका प्रभाव रहता है----1-ब्लड प्रेशर बढ़ता है2-गैस बनती है 3-हृदय रोग की संभावना बन जाती है 4-मधुमेह हो जाता है 5-लगातार सिर में दर्द होता है 6-नींद नहीं आती है7-स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है 7-लकवा भी हो सकता है 8-ब्रेन हेमरेज की सम्भावना ।                    मन पर प्रभाव-----1-मन कमजोर हो जाता है 2-आत्म बल समाप्त हो जाता है 3-चिन्ता से फिक्र होती है 4-फिक्र से तनाव होता है 5-तनाव से टेंशन होता है 6-टेन्शन से अवसाद होता है ।                                           4-आघात---जिन्होंने आघात या कोई दर्दनाक घटनाओं का सामना  किया होता है 'उन्हें अपने जीवन में चिंता विकार होने का उच्च जोखिम होता है ।                                       5-बीमारी के कारण तनाव-गम्भीर बीमारी भी भविष्य के लिए चिंता का कारण बन जाती है ।                                        6-ड्रग्स  या अल्कोहल--ड्रग्स या अल्कोहल का ज्यादा उपयोग भी चिन्ता का मुख्य कारण बन जाता है ।                                                      चिन्ता से सम्पूर्ण जीवन नारकीय बन जाता है ।व्यक्ति अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को भूल जाता है ।भय पूर्ण जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाता है ।भय के सन्दर्भ में प्लोरिन्स स्कोवल ने अपनी पुस्तक 'द गैम्बल आॅफ लाइफ एन्ड हाउ टू प्ले इट में लिखा है---भय आपकी आॅखो के समक्ष यह दृश्य स्पष्ट कर देता है,जिसके देखने से आप डरते हैं ।शेर अपनी   निर्भयता व खुंखारी आपके भय से प्राप्त करता है ।शेर की ओर निडर होकर जाओ।वह भाग जाएगा ।परन्तु यदि आप उससे भागेंगे तो वह आपके पीछे भागेगा ।                                      चिन्ता से बचने का एकमात्र उपाय है-भय से दूर रहना,जिनके करण चिन्ता हो रही है,उसके कारणों का जानना ज़रूरी है ।जिस दिन हमें चिन्ता के कारणों का पता  चल जाता है ।तो इस समस्या का समाधान मिल जाता है ।                  डाक्टर एच0एल0होलिगवर्थ के अनुसार---चिन्तित व्यक्ति को सिर्फ अपनी तकलीफ़ों का कारण  जानने की आवश्यकता है ।उसको बहुत साफ स्पष्ट शब्दों में उसकी शारीरिक तकलीफ़ों का कारण पता नहीं चलता है ।जिनसे वह डरता है।परन्तु जब उसे कारण समझ आता है तो उसके सारे भय दूर हो जाते हैं और स्वयं ही स्वस्थ हो जाता है ।       जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए चिंता से दूर रहना बहुत जरूरी है ।इस सन्दर्भ में सी0ई0एम0जोध ने इस प्रकार से स्पष्ट किया है----यदि आप प्रसन्नता के पीछे भागेंगे तो वह आपसे छिपती फिरेगी।अपना तन मन काम में  लगायें ।स्वयं को किसी आदर्श के लिए अर्पित करें जो आपके अह॔ से ऊंचा हो ।जब आप पीछे मुड़कर देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि आप बहुत ही आनंदित और खुश हैं ।                     चिन्ता का समाधान-----जीवन में प्रगति प्राप्त करने के लिए चिंता रूपी शत्रु से जीतना बहुत जरूरी है ।यह मनोवैज्ञानिक सच है कि जो होना है' वह होना ही है ।फिर अनावश्यक रूप से चिंता करके क्या फायदा है?निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देने से हम चिन्ता की समस्या से मुक्त हो सकते हैं ।वे इस प्रकार से हैं---1-मन को मजबूत बनाये 2-ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा व आस्था को रखें 3-जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाये 4-समय समय पर मनोचिकित्सक से परामर्श लें5-निर्णय लेने में किसी तरह का बिलम्ब न करें 6-दृढ़ इच्छाशक्ति रखें 7-'कार्य योजना के आधार पर ही कार्य करें 8-वर्तमान को महत्व दें9-मन को हमेशा शान्त रखें 10-सबके प्रति मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखें 11-महत्वाकांक्षी न बनें 12-अपने को समझने का प्रयास करें 13-निराशा से दूर रहें 14-सदा सुखद सन्देश की प्रतीक्षा करें 15-क्रोध न करें 16-दूसरे की गलतियों को भूले एवं क्षमा करें 17-मैत्रीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण बनें 18-नजरअंदाज करना सीखें 19-बुरे लोगों और बुरी चीजों से हमेशा दूर रहे '20-अपने समय को बर्बाद न करें 21-किसी की भी बात न सुने,अपने मन की बात सुने22-जिस कार्य में खुशी मिलती है,उस कार्य को करें 23-अतिरिक्त समय में महापुरुषों से सम्बंधित साहित्य को पढे24-घर में वृक्षारोपण का कार्य क्रम करें 25-दूसरे का सम्मान करना सीखें 26-सुकान्त फिल्मों को देंखे 27-सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखें 28-अपने कार्य को परिश्रम व ईमानदारी से करें 29-अनावश्यक छोटी छोटी बातों को बिल्कुल भी महत्व न दें 30-हमेशा मृदुभाषी बनें 'कम बोलने का प्रयास न करें ।                 इस प्रकार इन महत्वपूर्ण कारकों को अपने जीवन में अपनाकर अलोकिक ऊर्जा के साथ उत्साह के भाव का भी समावेश हो जाता है ।निरर्थक निष्प्रोज्य रूपी चिन्ता सदा सदा के लिए दूर चली जाती है ।जीवन आनंद मय बन जाता है । लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला । कला निष्णात-स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी अध्यापक व नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।
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