अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
महात्मा बुद्ध के उच्चादर्श----लेखक--'अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक व नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं ।बचपन से ही इनके अत्यधिक करूणा का भाव था।वे किसी को दुःखी नहीं देख सकते थे।एक बार वे शुद्ध वायु सेवन करने के लिए महल से बाहर निकले।उन्होंने हर किसी को दुःख की स्थिति में देखा ।इन दृश्यों को देखकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संसार दुःखों से भरा पडा हुआ है ।दुःखों को दूर करने का उपाय खोजने लगे ।महल में रहकर उन्हें किसी तरह का उपाय नहीं मिल पाया ।एक दिन उन्होंने महल छोडने का मन बनाया ।अपनी पुत्री और पत्नी को छोड़कर ज्ञान की प्राप्ति के लिए वन को चल दिए ।कई वर्ष कठोर साधना के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई ।वे गाँव गाँव में पैदल चलकर अपने उपदेशों को दे दिया करते थे।महात्मा बुद्ध एक बार अपने उपदेशों को जन जन पहुंचाने के लिए यात्रा पर रवाना हुए ।रास्ते में उन्हें थकावट लगी।पास में एक आम का पेड़ था।महात्मा बुद्ध पेड़ के नीचे लेट गये।थोड़ी देर वहां से कुछ लोग गुजरने लगे ।उनकी दृष्टि पेड़ लगे आमों पर पडी ।आम निकालने के लिए वे पेड़ पर पत्थर फेंकने लगे।बहुत सारे आम गिरने पर वे खुश हुए ।एक-एक करके इकट्ठे करने लगे ।तभी उनकी नजर महात्मा बुद्ध पर पडी ।महात्मा बुद्ध के सिर से खून निकलने लगा ।यह दृश्य देखकर वे लोग बडे दुःखी हुए ।उन्हें लगा कि उनके सिर पर हमारे पत्थर से लगी,और वे बुद्ध से क्षमा याचना करने लगे ।महात्मा बुद्ध ने कहा-मुझे इस बात का दुःख नहीं है कि तुमने मुझे पत्थर मारा,मै यह महसूस कर रहा हूँ कि इसी तरह से आपने पेड़ पर भी पत्थर फेंके ।पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे आम दिये।मैं तुम्हें भय और अपराध के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पाया ।यह सुनकर उन लोगों को बडा आश्चर्य हुआ ।मन ही मन महात्मा बुद्ध के हृदय की पवित्रता को नमन करने लगे ।
महात्मा बुद्ध के उच्चादर्श----लेखक--'अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक व नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं ।बचपन से ही इनके अत्यधिक करूणा का भाव था।वे किसी को दुःखी नहीं देख सकते थे।एक बार वे शुद्ध वायु सेवन करने के लिए महल से बाहर निकले।उन्होंने हर किसी को दुःख की स्थिति में देखा ।इन दृश्यों को देखकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संसार दुःखों से भरा पडा हुआ है ।दुःखों को दूर करने का उपाय खोजने लगे ।महल में रहकर उन्हें किसी तरह का उपाय नहीं मिल पाया ।एक दिन उन्होंने महल छोडने का मन बनाया ।अपनी पुत्री और पत्नी को छोड़कर ज्ञान की प्राप्ति के लिए वन को चल दिए ।कई वर्ष कठोर साधना के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई ।वे गाँव गाँव में पैदल चलकर अपने उपदेशों को दे दिया करते थे।महात्मा बुद्ध एक बार अपने उपदेशों को जन जन पहुंचाने के लिए यात्रा पर रवाना हुए ।रास्ते में उन्हें थकावट लगी।पास में एक आम का पेड़ था।महात्मा बुद्ध पेड़ के नीचे लेट गये।थोड़ी देर वहां से कुछ लोग गुजरने लगे ।उनकी दृष्टि पेड़ लगे आमों पर पडी ।आम निकालने के लिए वे पेड़ पर पत्थर फेंकने लगे।बहुत सारे आम गिरने पर वे खुश हुए ।एक-एक करके इकट्ठे करने लगे ।तभी उनकी नजर महात्मा बुद्ध पर पडी ।महात्मा बुद्ध के सिर से खून निकलने लगा ।यह दृश्य देखकर वे लोग बडे दुःखी हुए ।उन्हें लगा कि उनके सिर पर हमारे पत्थर से लगी,और वे बुद्ध से क्षमा याचना करने लगे ।महात्मा बुद्ध ने कहा-मुझे इस बात का दुःख नहीं है कि तुमने मुझे पत्थर मारा,मै यह महसूस कर रहा हूँ कि इसी तरह से आपने पेड़ पर भी पत्थर फेंके ।पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे आम दिये।मैं तुम्हें भय और अपराध के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पाया ।यह सुनकर उन लोगों को बडा आश्चर्य हुआ ।मन ही मन महात्मा बुद्ध के हृदय की पवित्रता को नमन करने लगे ।
0 Comments:
Post a Comment