अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
सत्संगति का महत्व--अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।कुसंगति का ज्वर सबसे भंयकर होता है ।जिसका अंत अपराध करने की प्रवृत्ति में होता है ।इसी कारण प्राचीन काल से ही सत्संगति में रहने की प्रेरणा दी जाती रही है ।शास्त्रों में सत्संगति का महत्व इस तरह से बताया गया है-गंगा की तरह पाप का नाश करने वाली , कामधेनु की तरह इच्छित चीज देने वाली,बहुत पुण्य से प्राप्त होने वाली सत्संगति दुर्लभ है । सत्संगति का अर्थ होता है ''अच्छी संगति ''यदि हम अपने जीवन में अच्छी प्रगति व प्रतिष्ठा चाहते हैं तो हमें अच्छी संगति में रहना चाहिए ।सत्संगति एक प्रकार से दिव्य औषधि है ।जिसका प्रभाव जीवन पर्यन्त तक बना रहता है ।हमारे धार्मिक ग्रन्थों में सत्संगति के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं ।रत्नाकर डाकू साधुओं की संगति में आकर महर्षि बाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।श्रेष्ठ महाकाव्य रामायण की रचना कर डाली ।अंगुलिमाल डाकू महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने से बौद्ध धर्म का अनुयायी बना ।इस सत्यता को विदुषी उषा शर्मा ने इस तरह से उद्घाटित किया है--अच्छी संगति राखिये ,व्यक्तित्व निखार कर जाय'कुसंगति हो जाय जीवन में,चरित्र नष्ट हो जाय।।अक्षत कुमकुम संग मिले ,मस्तक पर सज जाय।अक्षत दाल संग मिले तो,खिचड़ी ही बन जाय।। भावी पीढ़ी से ही सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है ।उन्हें हमेशा सत्संगति में रहना चाहिए ।सत्संगति में रहने से ही विचारों को सही दिशा मिलती है ।सत्संगति इस प्रकार की नौका है जो हमें दूषित वातावरण में रहने नहीं देती।गलत रास्तों से हमेशा बचाने का प्रयास करती रहती है ।हिन्दी साहित्य के समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ठीक ही लिखा है--''किसी युवा पुरूष की संगति बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बन्धी चक्की के समान होगी जो उसे दिन पर दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जायेगीं और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जायेगी ।
सत्संगति वाला व्यक्ति जो बोलता है,उसे करके दिखाता है ।उसकी कथनी और करनी में में किसी तरह का अन्तर नहीं रहता है।सत्संगति कल्याण कारी मार्ग है।अच्छी संगति में रहने वाला व्यक्ति
हर समय सतर्क रहता है ।यदि दुर्भाग्य वश कुमार्ग पर चला भी जाता है,तो उसके हितैषी सच्चे मित्र उसका मार्गदर्शन कर लेते लेते हैं ।
सत्संगति के विषय में विद्वानों का मानना है कि गन्दी नाली का पानी जब नदी में जा गिरता है तो नदी की संगति से गंगा जल की तरह पवित्र बन जाता है ।स्वाति की बूँद सीप में गिरने से मोती बन जाता है ।पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है ।
सत्संगति का महत्व--अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।कुसंगति का ज्वर सबसे भंयकर होता है ।जिसका अंत अपराध करने की प्रवृत्ति में होता है ।इसी कारण प्राचीन काल से ही सत्संगति में रहने की प्रेरणा दी जाती रही है ।शास्त्रों में सत्संगति का महत्व इस तरह से बताया गया है-गंगा की तरह पाप का नाश करने वाली , कामधेनु की तरह इच्छित चीज देने वाली,बहुत पुण्य से प्राप्त होने वाली सत्संगति दुर्लभ है । सत्संगति का अर्थ होता है ''अच्छी संगति ''यदि हम अपने जीवन में अच्छी प्रगति व प्रतिष्ठा चाहते हैं तो हमें अच्छी संगति में रहना चाहिए ।सत्संगति एक प्रकार से दिव्य औषधि है ।जिसका प्रभाव जीवन पर्यन्त तक बना रहता है ।हमारे धार्मिक ग्रन्थों में सत्संगति के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं ।रत्नाकर डाकू साधुओं की संगति में आकर महर्षि बाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।श्रेष्ठ महाकाव्य रामायण की रचना कर डाली ।अंगुलिमाल डाकू महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने से बौद्ध धर्म का अनुयायी बना ।इस सत्यता को विदुषी उषा शर्मा ने इस तरह से उद्घाटित किया है--अच्छी संगति राखिये ,व्यक्तित्व निखार कर जाय'कुसंगति हो जाय जीवन में,चरित्र नष्ट हो जाय।।अक्षत कुमकुम संग मिले ,मस्तक पर सज जाय।अक्षत दाल संग मिले तो,खिचड़ी ही बन जाय।। भावी पीढ़ी से ही सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है ।उन्हें हमेशा सत्संगति में रहना चाहिए ।सत्संगति में रहने से ही विचारों को सही दिशा मिलती है ।सत्संगति इस प्रकार की नौका है जो हमें दूषित वातावरण में रहने नहीं देती।गलत रास्तों से हमेशा बचाने का प्रयास करती रहती है ।हिन्दी साहित्य के समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ठीक ही लिखा है--''किसी युवा पुरूष की संगति बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बन्धी चक्की के समान होगी जो उसे दिन पर दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जायेगीं और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जायेगी ।
सत्संगति वाला व्यक्ति जो बोलता है,उसे करके दिखाता है ।उसकी कथनी और करनी में में किसी तरह का अन्तर नहीं रहता है।सत्संगति कल्याण कारी मार्ग है।अच्छी संगति में रहने वाला व्यक्ति
हर समय सतर्क रहता है ।यदि दुर्भाग्य वश कुमार्ग पर चला भी जाता है,तो उसके हितैषी सच्चे मित्र उसका मार्गदर्शन कर लेते लेते हैं ।
सत्संगति के विषय में विद्वानों का मानना है कि गन्दी नाली का पानी जब नदी में जा गिरता है तो नदी की संगति से गंगा जल की तरह पवित्र बन जाता है ।स्वाति की बूँद सीप में गिरने से मोती बन जाता है ।पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है ।

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