योग्य तप और साधना की गुफाओं में मल और मूत्र : डा बृजेश सती

अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड
मध्य हिमालय स्थित केदारनाथ शिव का प्रमुख धाम है। प्रतिवर्ष देश दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु केदारनाथ के दर्शनार्थ आते हैं। केदारनाथ धाम के आसपास कई  महत्वपूर्ण दर्शनीय एवं आध्यात्मिक स्थल भी हैं । केदारनाथ के करीब ही कई प्राकृतिक गुफाएं हैं ,जहां कभी ऋषि मुनि एवं संत साधना एवं तपस्या किया करते थे। इसके अलावा स्थानीय तीर्थ पुरोहित भी साधना करते हैं ।   ये गुफाएं तब चर्चाओं में आई , जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल एक ध्यान गुफा में 16 घंटे तक ध्यानावस्थित रहे थे । इसके बाद से इस गुफा के आसपास कई और गुफाओं को आधुनिक स्वरूप दिया गया ,लेकिन इन गुफाओं के व्यवसायीकरण और इनको आधुनिक स्वरूप प्रदान करने को लेकर पुरोहित एवं संतों की नाराजगी  भी सामने आ रही है।
गौरतलब है कि केदारनाथ धाम के समीप की कई प्राकृतिक गुफाएँ हैं।  इन प्राकृतिक गुफाओं में संत एवं स्थानीय पुरोहित  साधना व ध्यान करते रहे हैं ।
केदारनाथ धाम स्थित यह प्राकृतिक गुफाएं तब चर्चाओं में हैं जबकि पिछले वर्ष  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रवास के दौरान एक गुफा में साधना व ध्यान किया।  उसके बाद से ही यह गुफाएं चर्चाओं में आ गई। सरकार ने बकायदा गढ़वाल मंडल विकास निगम को इन गुफाओं को सजाने संवारने एवं उनके संरक्षण का जिम्मा भी सौंप दिया । इन गुफाओं में रात्रि प्रवास के लिए धनराशि भी निर्धारित कर दी गई । इन दिनों केदारनाथ के आसपास की गुफाओं को नया रूप देकर निर्माण कराया जा रहा है। गुफाओं को व्यवसायिक दृष्टि से आधुनिक सुविधाओं से जुड़ने को लेकर तीर्थ पुरोहित और संतों में खासी नाराजगी है ।उनका साफ तौर पर कहना है कि गुफाओं का स्वरूप पूर्ववत ही रहना चाहिए। इसको आधुनिक सुविधाओं से नहीं जोड़ा जाना चाहिए । इससे इसकी आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व कम हो जाएगी। 
केदारनाथ महासभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला एवं संतोष त्रिवेदी गुफाओं को आधुनिक स्वरूप एवं इनकी व्यवसायीकरण को लेकर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि गुफाओं का व्यवसायीकरण नहीं किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि यहां  संत ऋषि मुनियों के अलावा स्थानीय तीर्थ पुरोहित साधना किया करते आए हैं, लेकिन अब यहां पर गुफाओं को आधुनिक सुविधाओं से जोड़कर इसका  व्यवसायीकरण किया जा रहा है। जिसका वह पुरजोर विरोध करते हैं । हाल ही में संतों ने एक निर्माणाधीन गुफा के निर्माण कार्य को रोक दिया था। उसके बाद से ही तीर्थ पुरोहितों में गुफाओं के निर्माण को लेकर असंतोष व्याप्त है।
तीर्थ स्थलों में यात्रियों को रोके रखने के लिए तथा आय के नए साधन तलाशने की कवायद में गुफाओं पर फोकस किया जा रहा है । हालांकि आर्थिक दृष्टि से सरकार की इस पहल को कुछ हद तक सही माना जा सकता है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों के तर्क को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। गुफाओं को  अत्याधुनिक सुविधाओं से जोड़ने से कहीं ना कहीं इन गुफाओं के प्राकृतिक स्वरुप, धार्मिक मान्यता एवं  महत्व कम तो होगा ही। क्योंकि गुफा के अंदर मल मूत्र इत्यादि का त्याग से गुफा अपवित्र  होगी । बेहतर होगा कि गुफाओं को उसके प्राकृतिक स्वरूप में ही रहने दिया जाए। आखिर योग ध्यान और तपस्या  के भी कुछ मायने होते हैं । आधुनिक सुविधाओं से युक्त गुफाएं  किसी भी कीमत में योग ,साधना  व  ध्यान के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि  कि राज्य सरकार  तीर्थ पुरोहित एवं संतों की भावना का आदर करेगी।
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