अभिव्यक्ति न्यूज़ :उत्तराखंड
निर्मल मन---लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।हिन्दी अध्यापक ।नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।कठोर तपस्या करने के बाद महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे बौद्ध दर्शन के प्रणेता कहलाये ।महात्मा बुद्ध ने संकल्प लिया कि--इस ज्ञान का प्रचार प्रसार गाँव से शुरू करूंगा । तब महात्मा बुद्ध गाँव गाँव में पैदल जाकर उपदेश दे दिया करते थे।एक बार एक गाँव में उपदेश दे रहे थे,वहां पर एक उदन्डी व गुस्सैल स्वभाव का बालक था।महात्मा बुद्ध जैसे अपनी बात कहते,वह महात्मा बुद्ध को भला बुरा कहता जाता ।महात्मा बुद्ध ने उस बालक की बातों की ओर किसी तरह से ध्यान नहीं दिया ,और उपदेश देते रहें ।उपदेश सुन रहे श्रद्धालुओं को उस बालक पर क्रोध आया,तो महात्मा बुद्ध ने उन्हें भी बालक को मारने पीटने से रोक दिया । इस पर बुद्ध को अपशब्द कह रहे बालक को बहुत दुःख हुआ ।वह चिंतन करने लगा कि मैं उन्हें बार बार गाली दे रहा था,तब भी उन पर मेरी गलियों का कोई असर नहीं पड रहा था।वे चाहते,तो किसी से भी मेरी पिटाई करवा सकते थे।लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ।बल्कि जो मुझे मारने दौड़ रहे थे ,उनको भी रोका।चुपचाप सुनकर भी अनसुना करते रहे।इस तरह सोचते हुए वह बालक आत्मग्लानी महसूस करने लगा ।अब उससे रहा नहीं गया।वह महात्मा बुद्ध की खोज करने लगा ।अन्त में उसे खोज करते हुए महात्मा बुद्ध एक गाँव में मिलें ।उसने तुरन्त महात्मा बुद्ध के चरण पकडे और क्षमा याचना करते हुए कहने लगा कि मैंने कल आपको तरह-तरह की गालियां दी, लेकिन आपने कुछ भी नहीं कहा।महात्मा बुद्ध कहने लगे कि कि मैं तो कल की बात कल पर ही छोड़ देता हूँ ।वर्तमान में अच्छी सोच धारण करके जीवन यापन करता हूँ ।तुमने गलत कार्य के लिये क्षमा मांग दी है।इसलिए अब तुम निर्मल हो गये हो।आज से ही अच्छा सोचना शुरू कर दो।तुम्हें शान्ति मिलेगी।
निर्मल मन---लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।हिन्दी अध्यापक ।नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।कठोर तपस्या करने के बाद महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे बौद्ध दर्शन के प्रणेता कहलाये ।महात्मा बुद्ध ने संकल्प लिया कि--इस ज्ञान का प्रचार प्रसार गाँव से शुरू करूंगा । तब महात्मा बुद्ध गाँव गाँव में पैदल जाकर उपदेश दे दिया करते थे।एक बार एक गाँव में उपदेश दे रहे थे,वहां पर एक उदन्डी व गुस्सैल स्वभाव का बालक था।महात्मा बुद्ध जैसे अपनी बात कहते,वह महात्मा बुद्ध को भला बुरा कहता जाता ।महात्मा बुद्ध ने उस बालक की बातों की ओर किसी तरह से ध्यान नहीं दिया ,और उपदेश देते रहें ।उपदेश सुन रहे श्रद्धालुओं को उस बालक पर क्रोध आया,तो महात्मा बुद्ध ने उन्हें भी बालक को मारने पीटने से रोक दिया । इस पर बुद्ध को अपशब्द कह रहे बालक को बहुत दुःख हुआ ।वह चिंतन करने लगा कि मैं उन्हें बार बार गाली दे रहा था,तब भी उन पर मेरी गलियों का कोई असर नहीं पड रहा था।वे चाहते,तो किसी से भी मेरी पिटाई करवा सकते थे।लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ।बल्कि जो मुझे मारने दौड़ रहे थे ,उनको भी रोका।चुपचाप सुनकर भी अनसुना करते रहे।इस तरह सोचते हुए वह बालक आत्मग्लानी महसूस करने लगा ।अब उससे रहा नहीं गया।वह महात्मा बुद्ध की खोज करने लगा ।अन्त में उसे खोज करते हुए महात्मा बुद्ध एक गाँव में मिलें ।उसने तुरन्त महात्मा बुद्ध के चरण पकडे और क्षमा याचना करते हुए कहने लगा कि मैंने कल आपको तरह-तरह की गालियां दी, लेकिन आपने कुछ भी नहीं कहा।महात्मा बुद्ध कहने लगे कि कि मैं तो कल की बात कल पर ही छोड़ देता हूँ ।वर्तमान में अच्छी सोच धारण करके जीवन यापन करता हूँ ।तुमने गलत कार्य के लिये क्षमा मांग दी है।इसलिए अब तुम निर्मल हो गये हो।आज से ही अच्छा सोचना शुरू कर दो।तुम्हें शान्ति मिलेगी।

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