अभिव्यक्तिन्यूज़ : उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के विरोध की आंच का असर उत्तराखंड में कम करने के लिए संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों ने कवायद तेज कर दी है । इसी कड़ी में तीर्थ पुरोहितों की नब्ज टटोलने के लिए संघ के आला दर्जा के पदाधिकारी इन दिनों उत्तराखंड के धामों में प्रवास कर रहे हैं । विगत दिनों सर संघ चालक के साथ संघ पदाधिकारियों ने गंगोत्री धाम जाकर वहां के तीर्थ पुरोहितों से उनकी नाराजगी जानने की कोशिश की। अब देखना दिलचस्प होगा कि संघ के पदाधिकारियों का सियासी आपदा प्रबंधन , भाजपा को होने वाली सियासी नुकसान से कैसे और कितना बचा सकता है।
गौरतलब है कि देव स्थानम बोर्ड के विरोध में पिछले लंबे समय से चार धामों के तीर्थ पुरोहित , धामों में धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हैं । राज्य सरकार ने दिसंबर 2019 में उत्तराखंड देवस्थानम प्रबंधन विधेयक राज्य विधानसभा से पारित किया । इस के विरोध में चार धामों के तीर्थ पुरोहित पिछले आठ महीनों से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने अब विरोध का नया तरीका अपनाया है, त्रिकाल अर्ध नग्नावस्था में देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे हैं, तो गंगोत्री व यमुनोत्री में पिछले दो महीनों से धरना चल रहा है।
एक ओर उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का विरोध तेज हुआ तो दूसरी ओर देवस्थानम बोर्ड के विरोध में तीर्थ पुरोहितों के साथ ही साथ अंदर खाने ब्राह्मण समाज भी लामबंद होने लगा है। ब्राह्मणों के विरोध को कम करने के लिए संघ मैदान में उतर गया है। इसी कड़ी में संघ के सह कार्यवाह भैया जी जोशी और कृष्ण गोपाल ने गंगोत्री धाम पहुंचकर तीर्थ पुरोहितों की नब्ज टटोली। इस दौरान तीर्थ पुरोहितों ने संघ पदाधिकारियों के सामने अपने गुस्से का खुले तौर पर इजहार किया। गंगोत्री धाम के रावल सत्येंद्र सेमवाल ने संघ पदाधिकारियों से कहा कि देवस्थानम बोर्ड को जबरदस्ती उनके उपर थोपा गया है। एक्ट को बनाने से पहले चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों से कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया ।उन्होंने लंबी वार्ता के दौरान कहा कि एक्ट में कई विसंगतियां हैं, जो सीधे तौर पर चारों धामों से जुड़े मंदिरों एवं उनके हकों को प्रभावित करती हैं । उन्होंने संघ के पदाधिकारियों के समक्ष यह भी कहा तीर्थ पुरोहितों और हकहकूकधारी धारियों का यह विरोध 2022 में भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
2022 के चुनाव से पहले भाजपा और उसका थिंक टैंक अपने परंपरागत वोट बैंक को खिसकने से बचाने की कवायद में जुट गया है। उत्तर प्रदेश में सियासी आपदा प्रबंधन के बाद, अब उत्तराखंड के चार धामों के तीर्थ पुरोहितों को साधने की दिशा में भी कदम बढ़ाए गए हैं । अब देखने वाली बात होगी कि संघ के आला पदाधिकारियों की यह मुहिम क्या रंग लाती है । यदि समय रहते हैं तीर्थ पुरोहितों को मनाया नहीं गया तो, आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपने बडे वोट बैंक से हाथ धोना पड़ सकता है।
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