कोरोना काल में टूट रहे है,बच्चों के बड़े -बड़े सपने एक साल से तरसे पढ़ाई को ।।

 रिपोटर : संदीप सिंह (कुठौंद जालौन)

कोरोना है या कोई राजनीत,केवल स्कूल ही बन्द क्यो ।।

कोरोना काल में टूट रहे है,बच्चों के बड़े -बड़े सपने एक साल से तरसे पढ़ाई को ।।

ऑन लाईन शिक्षा केवल एक औपचारिकता ।। 

कोरोना के नाम पर विद्यालय एवं बच्चों के साथ किया जा रहा है खिलबाड़  ।।



कुठौंद जालौन 22 मार्च 2020 में समूचे भारत मे कोरोना जैसी वैश्विक  बीमारी के रोकथाम हेतू विद्यालय बंद कर दिये गये थे । जिसका परिणाम क्या हुआ था कि सत्र 2019-20 तथा  2020-21 दोनो ही प्रभावित हुए थे,तथा बच्चों को पढ़ाई पूरी तरह से चौपट हो गयी,सरकार के आदेशानुसार स्कूलों ने ओनलाईन कक्षायें भी दी लेकिन सही नेटवर्क तथा गरीब अभिभावकों के पास मोबाईल ना होने की बजह से ओनलाईन कक्षायें केबल औपचारिक ही रह गयी । तथा ठीक आठ महीने बाद जैसे तैसे स्थितियाँ सुधरी 1 मार्च से फिर से बच्चों के चहरे पर मुस्कान आयी थी स्कूल खोले गये थे पुन: फिर स्कूलो को 24 मार्च से 31 मार्च तक बन्द  कर दिया गया था,फिर खबर आती है कि 1 अप्रेल से 4 अप्रेल तक  बन्द  रहेंगे स्कूल उसके बाद 11 अप्रेल तक सरकार पुन: स्कूलो के साथ लुक्का छुप्पी का खेल खेलने लगी है मै अरुण तिवारी  सरकार से पूछना चाहता हूँ । प्रदेश में हर जगह हर चीज खुली हुई है  । कोरोना केवल क्या स्कूलों  में ही आक्रमण करेगा । बच्चो को कागजो मे प्रोउन्नति करने से क्या शिक्षा मिल जयेगी । स्कूल बन्द करना  कोरोना का सॉल्यूशन नही है किसी भी रोग का सॉल्यूशन इलाज होता है वैक्सीन लगवाना कोरोना का सॉल्यूशन है सरकार को टीम बनाकर सभी स्कूलो में हर बच्चे तथा सभी अध्यापकों एवं अभिभावकों को वैक्सीन लगवानी चाहिये । 

सरकार को भी एक समग्र नीति स्कूलों के लिए बनानी चाहिए । जैसे कि वे स्कूल जो आर्थिक दबावों को वहन नहीं कर पा रहे हैं उन्हें कुछ सहायता मिले. ऐसे बहुत से विद्यालय हैं जो काफी समय तक कोविड-19 से जुड़ी आर्थिक परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाएंगे. उनके लिए मानव राज्यों, शिक्षा मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय को कुछ योजना बनानी चाहिए.

 यह एक ऐसा समय है जिसका उपयोग शिक्षा के संपूर्ण ढांचे में सुधार और नवनिर्माण के लिए किया जा सकता है मगर अफसोस की बात यह कि शिक्षा से जुड़े ज्यादातर घटक इस समय का उपयोग शार्टकट जैसे ऑन लाईन कक्षायें खोजने के लिए कर रहे हैं जो कि वास्तव में भविष्य की शिक्षा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार को चाहिए कि वह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से विचार करें और ऑनलाइन शिक्षा के इस प्रहसन को कम या बंद करने का प्रयास करें।सायद सभी को ज्ञात ही होगा की एक छोटे से स्कूल से भी कमसे कम 20 परिवारों का भरण पोषण होता था बो परिवार भूखो मरने की कगार पर है जो पेशे से अध्यापक है बो दूसरा काम भी नही कर सकते इस समय निजी विद्यालयों के स्टाफ़ की स्थिति ये है की बो दर दर भटकने को मजबूर है।  

बताते चले कि 22 मार्च 2020 को सरकारी आदेशानुसार सभी स्कूल बंद कर दिए जाने के उपरांत सम्पूर्ण प्राइवेट शिक्षक वर्ग बेरोजगार हो गया । पूरे 11 माह पश्चात दुबारा स्कूल खुलने पर सभी प्राइवेट शिक्षिको के चहरे पर एक खुशी दिखाई दी ओर फिर से लोगो को रोजगार मिला लेकिन दुर्भाग्य वश  लोगो को अपने रोजगार से पुनः हांथ धोना पड़ रहा है। यह एक चिंतनीय विषय है। सरकार ना तो उन्हें बेरोजगारी भत्ता उपलब्ध करा रही है ओर ना किसी प्रकार की सहायता । जैसा कि मोदी कि कहा था कि युवा बेरोजगार होने पर पकौड़े  तल सकता है ,शायद सरकार अपनी कार्यशैली के अनुसार मोदी जी सपना सच करना चाहती है,

इसी लिए सरकार कोरोना का बहाना बनाकर सबसे पहले स्कूल बंद करती है  जिसके फलस्वरूप ना तो बच्चे शिक्षित हो और उन्हें शिक्षित करने वाले शिक्षक और विद्यालय का अस्तित्व रहे। 

सरकार ना तो किसी वित्तविहीन / प्राइवेट विद्यालय एवं शिक्षकों  को कोई राहत राशि उपलब्ध करा रही है ना ही 20 लाख करोड़ के पैकेज में कोई जिक्र था । सरकार की मंशा साफ है।

इस समस्या से ना केवल ग्रामीण आँचल के लोग बल्कि शहर के लोग भी बुरी तरह से प्रभावित हुए है इसलिये हमरा सभी से निवेदन है कि हम सबको एक जुट होकर इस मुहिम मे हिस्सा लेना चाहिये तथा एक जुट होकर आवाज उठानी चाहिये जिससे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ना हो सके ।

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