अभिव्यक्तिन्यूज़ : उत्तराखंड
उत्तराखंड के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य शिक्षाविद अखिलेश चमोला गायत्री महामंत्र पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि गायत्री महामंत्र सनातन एवं अनादि मंत्र है और पुराणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था इसी गायत्री के साधना करके उन्हें सृष्टि निर्माण की शक्ति प्राप्त हुई गायत्री के 4 चरणों की व्याख्या स्वरूप ही ब्रह्मा जी ने चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया इसलिए गायत्री को वेदमाता भी कहा जाता है चारों वेद गायत्री मां की व्याख्या हैं गायत्री सर्व श्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मंत्र है जो कार्य संसार में किसी अन्य मंत्र से हो सकता है गायत्री से भी अवश्य हो सकता है इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं होता इससे सरल स्वल्प और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है गायत्री महामंत्र के नियमित जाप से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है गायत्री को भूलोक की कामधेनु कहा गया है क्योंकि यह आत्मा की समस्त पिपाशाओं को शांत करती है गायत्री को सुधा यानि अमृत भी कहा गया है क्योंकि यह जन्म मृत्यु के चक्र से छुड़ाकर सच्चा अमृत प्रदान करने की शक्ति से परिपूर्ण है मां गायत्री को पारस मणि भी कहा गया है क्योंकि इसकी उपासना से लोहे के सामान कलुषित अंतःकरण शुद्ध स्वर्ण जैसा परिवर्तित हो जाता है गायत्री को कल्पवृक्ष भी कहा गया है क्योंकि इसकी छाया बैठकर मनुष्य उन सब कामनाओं को पूर्ण कर सकता है जो उसके लिए उचित और आवश्यक है श्री चमोला कहते हैं कि गायत्री जप एक आवश्यक एवं नित्य कर्तव्य होना चाहिए क्योंकि इस महामंत्र के नियमित जाप से बहुमूल्य दिव्य संपत्तियों की प्राप्ति होती है वे कहते हैं कि गायत्री साधना के नियम बहुत सरल है स्नान आदि से शुद्ध होकर प्रातः काल पूर्व की ओर तथा सायं काल पश्चिम की ओर मुंह करके आसन बिछाकर जप के लिए बैठना चाहिए पास में जल का बरतन तथा धूप बत्ती जला कर रख लेनी चाहिए जल और अग्नि को साक्षी के रूप में समीप रखकर जप करना उत्तम माना गया है कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए तथा जप पूरा होने के बाद पास में रखे हुए जल को सूर्य के सामने अर्ध्य चढ़ा देना चाहिए
ऊं भूर्भुव : स्व: तत्सवितुर्वरेंण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
उत्तराखंड के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य शिक्षाविद अखिलेश चमोला गायत्री महामंत्र पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि गायत्री महामंत्र सनातन एवं अनादि मंत्र है और पुराणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था इसी गायत्री के साधना करके उन्हें सृष्टि निर्माण की शक्ति प्राप्त हुई गायत्री के 4 चरणों की व्याख्या स्वरूप ही ब्रह्मा जी ने चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया इसलिए गायत्री को वेदमाता भी कहा जाता है चारों वेद गायत्री मां की व्याख्या हैं गायत्री सर्व श्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मंत्र है जो कार्य संसार में किसी अन्य मंत्र से हो सकता है गायत्री से भी अवश्य हो सकता है इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं होता इससे सरल स्वल्प और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है गायत्री महामंत्र के नियमित जाप से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है गायत्री को भूलोक की कामधेनु कहा गया है क्योंकि यह आत्मा की समस्त पिपाशाओं को शांत करती है गायत्री को सुधा यानि अमृत भी कहा गया है क्योंकि यह जन्म मृत्यु के चक्र से छुड़ाकर सच्चा अमृत प्रदान करने की शक्ति से परिपूर्ण है मां गायत्री को पारस मणि भी कहा गया है क्योंकि इसकी उपासना से लोहे के सामान कलुषित अंतःकरण शुद्ध स्वर्ण जैसा परिवर्तित हो जाता है गायत्री को कल्पवृक्ष भी कहा गया है क्योंकि इसकी छाया बैठकर मनुष्य उन सब कामनाओं को पूर्ण कर सकता है जो उसके लिए उचित और आवश्यक है श्री चमोला कहते हैं कि गायत्री जप एक आवश्यक एवं नित्य कर्तव्य होना चाहिए क्योंकि इस महामंत्र के नियमित जाप से बहुमूल्य दिव्य संपत्तियों की प्राप्ति होती है वे कहते हैं कि गायत्री साधना के नियम बहुत सरल है स्नान आदि से शुद्ध होकर प्रातः काल पूर्व की ओर तथा सायं काल पश्चिम की ओर मुंह करके आसन बिछाकर जप के लिए बैठना चाहिए पास में जल का बरतन तथा धूप बत्ती जला कर रख लेनी चाहिए जल और अग्नि को साक्षी के रूप में समीप रखकर जप करना उत्तम माना गया है कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए तथा जप पूरा होने के बाद पास में रखे हुए जल को सूर्य के सामने अर्ध्य चढ़ा देना चाहिए
ऊं भूर्भुव : स्व: तत्सवितुर्वरेंण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
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