सच्चे शिष्य की पहचान---लेखक---अखिलेश चन्द्र चमोला ।

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सच्चे शिष्य की पहचान---लेखक---अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित।हिन्दी अध्यापक ।नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ था।नरेन्द्र नाथ बचपन से ही बडे कुशाग्र बुद्धि के थे।हर बात को प्रमाणिकता के आधार पर ही स्वीकारते थे।एक बार विवेकानंद ने अपनी माँ को पूजा पाठ करते हुए देखा।यह देखकर उनके अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न हुई ।जिज्ञासा का शमन करने के लिए अपनी माँ से पूछा---आप बडी तन्मयता के साथ पूजा पाठ कर रही हो,क्या आप बता सकती हो कि जिसकी पूजा-अर्चना आप खर रही हो,उसे आपने देखा है?मां ने बडी सहजता के साथ उत्तर दिया बेटे आज तक ईश्वर को किसी ने देखा नहीं है,लेकिन इतना जरुर है कि ईश्वर का नाम लेने से पूजा पाठ करने से मन को शान्ति मिलती है,हमारे पूर्वज भी इसी तरह से पूजा पाठ करते थे।उनकी चलाई हुई परम्परा का पालन हम लोग भी कर रहें हैं ।विवेकानंद माँ के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए ।विवेकानंद सोचने लगे कि जिस ईश्वर के लिए हम निष्ठा पूर्वक उपवास रखते हैं,यदि हमें उसके दर्शन नहीँ होते हैं,तो यह समय की बर्बादी है।इस सत्यता को जानने के लिए नरेन्द्र नाथ कई सिद्ध महात्माओं को मिले।लेकिन समस्या का सही समाधान नहीं मिल पाया ।एक दिन नरेन्द्र नाथ के मित्र ने बताया कि--हमारे घर में मंगलवार और शनिवार को कीर्तन होता है ।उसमें दक्षिण कालेश्वर के पुजारी श्री रामकृष्ण भी आते हैं ।उनका बहुत बड़ा नाम है ।उन पर मां काली का साक्षात प्रकटीकरण होता है ।वे जिसके लिए जो कहते हैं,उसके जीवन में वही घटित होता है ।उन्हें  तरह तरह की अलौकिक सिद्वियाॅ प्राप्त हैं ।यह सुनकर नरेन्द्र नाथ के मन में उत्साह का संचार पैदा हुआ ।मंगलवार को नरेन्द्रनाथ अपने मित्र के घर गये।वहां कीर्तन चल रहा था ।रामकृष्ण परमहंस भी वहां उपस्थित थे ।नरेन्द्र नाथ को अपने जीवन में पहली बार यह महसूस हुआ कि कोई शक्ति उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर रही है।नरेन्द्र नाथ ने भजन सुनाया।नरेन्द्र नाथ के भजन को सुनकर स्वामी राम कृष्ण भाव विभोर हो गये।जैसे ही भजन पूरा हुआ,रामकृष्ण परमहंस नरेन्द्र नाथ का आलिंगन करने लगे।बडे जोर जोर से यह कहने लगे ।तू सप्त ऋषियों में से एक ऋषि है।तेरी प्रतीक्षा मुझे बहुत पहले से थी।तुझे आज मां काली ने ही भेजा हुआ है ।तेरे ऊपर पूरे विश्व के मार्ग दर्शन करने की जिम्मेदारी है ।ऐसा सुनकर नरेन्द्र नाथ पीछे हट गये और कहने लगे कि---मैं यहाँ प्रशंसा सुनने नहीं आया हूँ ।आपकी इस तरह की चिकनी चुपडी बातों में आने वाला नहीं हूँ ।मुझे तत्काल एक समस्या का समाधान चाहिए ।।रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरातेहुए कहने लगे कि --बेटे तुम्हारी समस्या क्या है?नरेन्द्र नाथ ने कहा--क्या आपने भगवान को देखा है ?स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा--जिस तरह से मैं तुम्हें देख रहा हूँ ।इसी तरह से कई बार मां  काली को  देख चुका हूँ ।तुम्हें भी दर्शन करवा सकता हूँ ।तुम्हें दक्षिण कालेश्वर आना होगा ।तुम्हारी हर समस्या का समाधान करूँगा।इस तरह की चर्चा के बाद नरेन्द्र नाथ अपने घर को निकल गये।कुछ समय बाद नरेन्द्र नाथ को रामकृष्ण परमहंस की तस्वीर सामने दिखीं ,अन्दर ही अन्दर से नरेन्द्र नाथ पुनः रामकृष्ण परमहंस को मिलने के लिये  आतुर होने लगे ।मन ही मन यह सोचने लगे कि आज तक किसी ने यह नहीं कहा कि मैंने ईश्वर को देखा है ।रामकृष्ण परमहंस ही पहले सन्त हैं,जिन्होंने आत्म विश्वास के साथ कहा---मैंने ईश्वर को देखा है ।उनकी बात में प्रमाणिकता लग रही थी।नरेन्द्र नाथ से रहा नहीं गया ।रामकृष्ण परमहंस को मिलने दक्षिण कालेश्वर गए।दक्षिण कालेश्वर पहुँचने पर रामकृष्ण परमहंस ने जैसे ही नरेन्द्र नाथ को स्पर्श किया,उसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड घूमता हुआ नजर आया।अनेकों अनुभूतियाँ हुई ।फिर नरेन्द्र नाथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गये ।आगे चलकर भारतीय सन्स्कृति के प्रचारक व संवाहक बने।जगत गुरु के रूप में  सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष की पहचान बनाई और विवेकानन्द के  नाम से प्रसिद्ध हुए । शिष्य की पहचान---लेखक---अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित।हिन्दी अध्यापक ।नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ था।नरेन्द्र नाथ बचपन से ही बडे कुशाग्र बुद्धि के थे।हर बात को प्रमाणिकता के आधार पर ही स्वीकारते थे।एक बार विवेकानंद ने अपनी माँ को पूजा पाठ करते हुए देखा।यह देखकर उनके अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न हुई ।जिज्ञासा का शमन करने के लिए अपनी माँ से पूछा---आप बडी तन्मयता के साथ पूजा पाठ कर रही हो,क्या आप बता सकती हो कि जिसकी पूजा-अर्चना आप खर रही हो,उसे आपने देखा है?मां ने बडी सहजता के साथ उत्तर दिया बेटे आज तक ईश्वर को किसी ने देखा नहीं है,लेकिन इतना जरुर है कि ईश्वर का नाम लेने से पूजा पाठ करने से मन को शान्ति मिलती है,हमारे पूर्वज भी इसी तरह से पूजा पाठ करते थे।उनकी चलाई हुई परम्परा का पालन हम लोग भी कर रहें हैं ।विवेकानंद माँ के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए ।विवेकानंद सोचने लगे कि जिस ईश्वर के लिए हम निष्ठा पूर्वक उपवास रखते हैं,यदि हमें उसके दर्शन नहीँ होते हैं,तो यह समय की बर्बादी है।इस सत्यता को जानने के लिए नरेन्द्र नाथ कई सिद्ध महात्माओं को मिले।लेकिन समस्या का सही समाधान नहीं मिल पाया ।एक दिन नरेन्द्र नाथ के मित्र ने बताया कि--हमारे घर में मंगलवार और शनिवार को कीर्तन होता है ।उसमें दक्षिण कालेश्वर के पुजारी श्री रामकृष्ण भी आते हैं ।उनका बहुत बड़ा नाम है ।उन पर मां काली का साक्षात प्रकटीकरण होता है ।वे जिसके लिए जो कहते हैं,उसके जीवन में वही घटित होता है ।उन्हें  तरह तरह की अलौकिक सिद्वियाॅ प्राप्त हैं ।यह सुनकर नरेन्द्र नाथ के मन में उत्साह का संचार पैदा हुआ ।मंगलवार को नरेन्द्रनाथ अपने मित्र के घर गये।वहां कीर्तन चल रहा था ।रामकृष्ण परमहंस भी वहां उपस्थित थे ।नरेन्द्र नाथ को अपने जीवन में पहली बार यह महसूस हुआ कि कोई शक्ति उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर रही है।नरेन्द्र नाथ ने भजन सुनाया।नरेन्द्र नाथ के भजन को सुनकर स्वामी राम कृष्ण भाव विभोर हो गये।जैसे ही भजन पूरा हुआ,रामकृष्ण परमहंस नरेन्द्र नाथ का आलिंगन करने लगे।बडे जोर जोर से यह कहने लगे ।तू सप्त ऋषियों में से एक ऋषि है।तेरी प्रतीक्षा मुझे बहुत पहले से थी।तुझे आज मां काली ने ही भेजा हुआ है ।तेरे ऊपर पूरे विश्व के मार्ग दर्शन करने की जिम्मेदारी है ।ऐसा सुनकर नरेन्द्र नाथ पीछे हट गये और कहने लगे कि---मैं यहाँ प्रशंसा सुनने नहीं आया हूँ ।आपकी इस तरह की चिकनी चुपडी बातों में आने वाला नहीं हूँ ।मुझे तत्काल एक समस्या का समाधान चाहिए ।।रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरातेहुए कहने लगे कि --बेटे तुम्हारी समस्या क्या है?नरेन्द्र नाथ ने कहा--क्या आपने भगवान को देखा है ?स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा--जिस तरह से मैं तुम्हें देख रहा हूँ ।इसी तरह से कई बार मां  काली को  देख चुका हूँ ।तुम्हें भी दर्शन करवा सकता हूँ ।तुम्हें दक्षिण कालेश्वर आना होगा ।तुम्हारी हर समस्या का समाधान करूँगा।इस तरह की चर्चा के बाद नरेन्द्र नाथ अपने घर को निकल गये।कुछ समय बाद नरेन्द्र नाथ को रामकृष्ण परमहंस की तस्वीर सामने दिखीं ,अन्दर ही अन्दर से नरेन्द्र नाथ पुनः रामकृष्ण परमहंस को मिलने के लिये  आतुर होने लगे ।मन ही मन यह सोचने लगे कि आज तक किसी ने यह नहीं कहा कि मैंने ईश्वर को देखा है ।रामकृष्ण परमहंस ही पहले सन्त हैं,जिन्होंने आत्म विश्वास के साथ कहा---मैंने ईश्वर को देखा है ।उनकी बात में प्रमाणिकता लग रही थी।नरेन्द्र नाथ से रहा नहीं गया ।रामकृष्ण परमहंस को मिलने दक्षिण कालेश्वर गए।दक्षिण कालेश्वर पहुँचने पर रामकृष्ण परमहंस ने जैसे ही नरेन्द्र नाथ को स्पर्श किया,उसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड घूमता हुआ नजर आया।अनेकों अनुभूतियाँ हुई ।फिर नरेन्द्र नाथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गये ।आगे चलकर भारतीय सन्स्कृति के प्रचारक व संवाहक बने।जगत गुरु के रूप में  सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष की पहचान बनाई और विवेकानन्द के  नाम से प्रसिद्ध हुए । शिष्य की पहचान---लेखक---अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित।हिन्दी अध्यापक ।नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ था।नरेन्द्र नाथ बचपन से ही बडे कुशाग्र बुद्धि के थे।हर बात को प्रमाणिकता के आधार पर ही स्वीकारते थे।एक बार विवेकानंद ने अपनी माँ को पूजा पाठ करते हुए देखा।यह देखकर उनके अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न हुई ।जिज्ञासा का शमन करने के लिए अपनी माँ से पूछा---आप बडी तन्मयता के साथ पूजा पाठ कर रही हो,क्या आप बता सकती हो कि जिसकी पूजा-अर्चना आप खर रही हो,उसे आपने देखा है?मां ने बडी सहजता के साथ उत्तर दिया बेटे आज तक ईश्वर को किसी ने देखा नहीं है,लेकिन इतना जरुर है कि ईश्वर का नाम लेने से पूजा पाठ करने से मन को शान्ति मिलती है,हमारे पूर्वज भी इसी तरह से पूजा पाठ करते थे।उनकी चलाई हुई परम्परा का पालन हम लोग भी कर रहें हैं ।विवेकानंद माँ के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए ।विवेकानंद सोचने लगे कि जिस ईश्वर के लिए हम निष्ठा पूर्वक उपवास रखते हैं,यदि हमें उसके दर्शन नहीँ होते हैं,तो यह समय की बर्बादी है।इस सत्यता को जानने के लिए नरेन्द्र नाथ कई सिद्ध महात्माओं को मिले।लेकिन समस्या का सही समाधान नहीं मिल पाया ।एक दिन नरेन्द्र नाथ के मित्र ने बताया कि--हमारे घर में मंगलवार और शनिवार को कीर्तन होता है ।उसमें दक्षिण कालेश्वर के पुजारी श्री रामकृष्ण भी आते हैं ।उनका बहुत बड़ा नाम है ।उन पर मां काली का साक्षात प्रकटीकरण होता है ।वे जिसके लिए जो कहते हैं,उसके जीवन में वही घटित होता है ।उन्हें  तरह तरह की अलौकिक सिद्वियाॅ प्राप्त हैं ।यह सुनकर नरेन्द्र नाथ के मन में उत्साह का संचार पैदा हुआ ।मंगलवार को नरेन्द्रनाथ अपने मित्र के घर गये।वहां कीर्तन चल रहा था ।रामकृष्ण परमहंस भी वहां उपस्थित थे ।नरेन्द्र नाथ को अपने जीवन में पहली बार यह महसूस हुआ कि कोई शक्ति उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर रही है।नरेन्द्र नाथ ने भजन सुनाया।नरेन्द्र नाथ के भजन को सुनकर स्वामी राम कृष्ण भाव विभोर हो गये।जैसे ही भजन पूरा हुआ,रामकृष्ण परमहंस नरेन्द्र नाथ का आलिंगन करने लगे।बडे जोर जोर से यह कहने लगे ।तू सप्त ऋषियों में से एक ऋषि है।तेरी प्रतीक्षा मुझे बहुत पहले से थी।तुझे आज मां काली ने ही भेजा हुआ है ।तेरे ऊपर पूरे विश्व के मार्ग दर्शन करने की जिम्मेदारी है ।ऐसा सुनकर नरेन्द्र नाथ पीछे हट गये और कहने लगे कि---मैं यहाँ प्रशंसा सुनने नहीं आया हूँ ।आपकी इस तरह की चिकनी चुपडी बातों में आने वाला नहीं हूँ ।मुझे तत्काल एक समस्या का समाधान चाहिए ।।रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरातेहुए कहने लगे कि --बेटे तुम्हारी समस्या क्या है?नरेन्द्र नाथ ने कहा--क्या आपने भगवान को देखा है ?स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा--जिस तरह से मैं तुम्हें देख रहा हूँ ।इसी तरह से कई बार मां  काली को  देख चुका हूँ ।तुम्हें भी दर्शन करवा सकता हूँ ।तुम्हें दक्षिण कालेश्वर आना होगा ।तुम्हारी हर समस्या का समाधान करूँगा।इस तरह की चर्चा के बाद नरेन्द्र नाथ अपने घर को निकल गये।कुछ समय बाद नरेन्द्र नाथ को रामकृष्ण परमहंस की तस्वीर सामने दिखीं ,अन्दर ही अन्दर से नरेन्द्र नाथ पुनः रामकृष्ण परमहंस को मिलने के लिये  आतुर होने लगे ।मन ही मन यह सोचने लगे कि आज तक किसी ने यह नहीं कहा कि मैंने ईश्वर को देखा है ।रामकृष्ण परमहंस ही पहले सन्त हैं,जिन्होंने आत्म विश्वास के साथ कहा---मैंने ईश्वर को देखा है ।उनकी बात में प्रमाणिकता लग रही थी।नरेन्द्र नाथ से रहा नहीं गया ।रामकृष्ण परमहंस को मिलने दक्षिण कालेश्वर गए।दक्षिण कालेश्वर पहुँचने पर रामकृष्ण परमहंस ने जैसे ही नरेन्द्र नाथ को स्पर्श किया,उसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड घूमता हुआ नजर आया।अनेकों अनुभूतियाँ हुई ।फिर नरेन्द्र नाथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गये ।आगे चलकर भारतीय सन्स्कृति के प्रचारक व संवाहक बने।जगत गुरु के रूप में  सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष की पहचान बनाई और विवेकानन्द के  नाम से प्रसिद्ध हुए ।
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