उत्तराखंड की रानी लक्ष्मीबाई वीर बाला तीलू रौतेली-

अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड 

उत्तराखंड की रानी लक्ष्मीबाई वीर बाला तीलू रौतेली------हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड की अलौकिक सुन्दरता की आभा अपने आप में विशिष्ट व प्रभावकारी दृष्टिगोचर होती है ।यही से सूर्य भगवान सर्वप्रथम अपनी रश्मियों से समूचे जगत को आलोकित करते हैं ।यहां प्राचीन काल से आज तक अनेक नारी रत्नों ने अपने शौर्य रश्मियों का आलोक विकीर्ण किया है ।इसी आधार पर मनुस्मृति में कहा गया है---यत्र नार्येस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता 'अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है 'वहाँ देवता निवास करते हैं ।छायावादी काव्य धारा के आधार भूत स्तम्भ श्री जयशंकर प्रसाद जी ने भी नारी की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए कहा कि-नर से बढकर नारी'।भारतीय मानस का आदि शक्ति अर्धांगनी 'गृहलक्ष्मी'नारी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन नारायण के साथ लक्ष्मी 'शिव के साथ भवानी 'राम के साथ सीता और कृष्ण के साथ राधा की आराधना नारी शक्ति की ही अर्चना है।अपाला,गार्गी ,मैत्रेयी,विदुला की गौरव मयी परम्परा को भारतीय नारी ने ही निभाया है ।पुरूष और समाज के प्रति अपने दायित्वों का   पूरी ईमानदारी से निर्वाह किया है ।इस प्रकार किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं रही।इसी तरह की वीरागनाओं में  'तीलू रौतेली ' का नाम भी आता है ।                       तीलू रौतेली का जन्म 17वीं शताब्दी में  उत्तरार्द्ध में 8अगस्त 1661में चाॅवकोट परगना के गुराण गाँव में हुआ था ।बचपन से अद्भुत प्रतिभा से युक्त बडी साहसी निडर तथा दृढ़ इच्छाशक्ति से ओत-प्रोत थी।इसकी अतुलनीय साहसिक वीरता के कारण इसे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है ।अपनी छोटी अवस्था से ही साहसी तथा पराक्रमी  की मिशाल थी। इसके अन्दर अलग से कुछ करने का जज्वा था।मात्र 15से22वर्ष की अवस्था में लडने वाली तीलू रौतेली ने नया कीर्तिमान स्थापित किया ।                 तीलू रौतेली के पारिवारिक जीवन की पृष्ठभूमि पर दृष्टि डालने पर यह जानकारी मिलती है कि इनके पिता का नाम भूपसिंह गैरोला था।जो अपने समय के जाने माने थोकदार माने जाते थे ।इसके जुडवा भाई थे।जिनका नाम भगतु तथा पत्वा था ।ये दोनों बडे क्रांतिकारी तथा निर्भीक योद्धा थे ।इन्होंने गढवाली नरेश की आज्ञा पर कुमाऊँनी आक्रान्ता  का सिर काटकर ले आए थे।इनकी इस तरह की वीरता को देखकर राजा ने इन्हें 42गाँवो की थोकदारी दी।उस समय बाल बिबाह का ज्यादा प्रचलन था ।तीलू रौतेली की भी 15वर्ष की बाल्यावस्था में ईडा गाँव पट्टी मौदांडस्यू भूप्पा नेगी के सुपुत्र के साथ हुई ।लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था ।तीलू रौतेली के पिता और भाई तथा मंगेतर तीनों युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गये ।                            शीतकाल के पश्चात काॅडा के प्रसिद्ध मेले का समय आ गया था।तीलू रौतेली ने भी मां से मेले में चलने का आग्रह किया ।कांडा मेला की बात को सुनकर उसकी मां को अपने दोनों पुत्रों की याद आ गई ।उनकी याद में रोती हुई कहने लगी कि आज यदि मेरे दोनों पुत्र जीवित होते तो वे अवश्य अपने पिता और भाईयों का बदला लेते।कत्यूरों के रक्त से उस स्थान पर तर्पण कर ही मेले का आनंद लेते ।मां की इस बात से तीलू रौतेली के अन्दर एक औलोकिक ऊर्जा का प्रवेश हुआ ।बडी ओजपूर्ण वाणी में अपनी माता से कहने लगी -मां चिन्ता क्यों करती हो । क्या हुआ तुम्हारे पुत्र नहीं हैं तो मैं तो हूँ ।मैं अवश्य ही अपने पिता तथा भाईयों का बदला लेकर ही चैन लूंगी ।तीलू रौतेली ने सारे क्षेत्र में घोषणा करवा दी कि इस वर्ष मेले का आयोजन नहीं किया जायेगा ।कत्यूरी आक्रमणकारियोंके विनाश की जश्न मनाई जाएगी ।तीलू के इस तरह की क्रांति कारी घोषणा पर गांव के सारे लोग सहयोग करने के लिए एकजुट हो गये ।इस प्रकार सभी लोगों को साथ लेकर तीलू रौतेली काले रंग के घोड़े पर सवार होकर अपनी दो प्रिय सहेलियां बेल्लू और रक्की को भी साथ लेकर रण के लिए कूच कर गई।                          तीलू रौतेली ने सर्वप्रथम खैरागढ़ को मुक्त किया ।टकोली खाल में कत्यूरियों की पहुचने की खबर मिली ।तीलू रौतेली ने बांझ बृक्ष की आड़ में गोली चलाई।वह वृक्ष आज भी इस बात का साक्ष्य है ।इस बृक्ष का नाम गोली बांज बृक्ष पड गया ।मान्यता है कि स्थानीय लोग उस वृक्ष की पूजा करते हैं ।तीलू रौतेली ने कत्यूरी सेना को बुरी तरह से पराजित कर दिया ।वहां से तीलू ने उमरागढ पर धावा बोला।युद्ध में कई सैनिक मारे गए ।चारों ओर से तीलू रौतेली को विजय श्री मिलती रही।इस खुशी में उस स्थान पर बूंगी देवी की स्थापना की गई ।उमरागढी के बाद तीलू ने अपने पराक्रम से सल्ट महादेव में पहुंचे हुए शत्रुओं को भी भगाया।वहां पर शिव मन्दिर की स्थापना की। पूजा पाठ का अधिकार सन्तुउनियाल को दिया ।इसके पश्चात भीलड़ भौन की ओर कूच किया ।वहां भी शत्रुओं को बुरी तरह से खदेडा ।लेकिन तीलू रौतेली की दोनों सहेलियां पंच तत्व में बिलीन हो गई।शत्रु सेना ने मौके का फायदा उठाते हुए ज्यूॅदाल्यू पर कब्ज़ा कर लिया ।तीलू ने तुरन्त उन्हें वहां से भी भगाया।वहां मानसिंह को गणराज्य का सरदार नियुक्त किया ।इस बीच जहां भी तीलू रौतेली को शत्रु दिखें उन्हें वही खदेडा।तीलू रौतेली ने चारों ओर से शत्रुओं को पराजित करने के बाद अपने दल को नयार नदी के किनारे अपने दल को रोक दिया ।जब सभी सैनिक विश्राम कर रहे थे।तीलू रौतेली नयार नदी में स्नान करने के लिए गईं ।झाड़ी में छिपे रामू रजवार नामक शत्रु ने उस पर प्रहार कर दिया ।निहत्थी तीलू रौतेली ने घायल अवस्था में भी अपने शत्रु के प्राणों का अन्त किया ।अन्ततः अपने इस तरह के सात बर्षों के निरन्तर संघर्ष के बाद यह अतुलनीय अदम्य साहस से सम्पन्न सूर्य सदा सदा के लिए अस्त हो गया।इतिहास में बलिदानियों की सूची में नया नाम अंकित हो गया ।                            आज भी तीलू रौतेली की याद में कांडा और बीरोखाल के इलाके में  हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है ।उत्तराखंड सरकार द्वारा उल्लेखनीय कार्य करने वालों को तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है ।                               जब भी गढवाल में फसल काटी जाती थी' वैसे ही कुमाऊं से कत्यूर के सैनिक लूटपाट करने आ जाते थे ।फसल के साथ वहां के लोगों का तरह तरह का सामान  तथा बकरियां उठा करके ले जाते थे ।तीलू रौतेली का जीवन धरती से आसमान तक उठने  की प्रेरणा प्रद गाथा है।उन्होंने अपनी इस सोच को भी उजागर किया कि मातृभूमि है तो हम हैं ।मातृभूमि नहीं है तो हमारा कोई अस्तित्व नहीं है ।इस तरह की अद्भुत नारी सदा वन्दनीय स्वार्थ हिन्सा  और अनैतिकता के  अंधकार में भटकती हुई मानवता के लिए एक मात्र प्रकाश पुंज है।यह इस तरह का प्रकाश पुंज है जो युग युगों तक चमकता रहेगा । लेखक----अखिलेश चन्द्र चमोला । स्वर्ण पदक विजेता । अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित । राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित ।हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।
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