रक्षा बन्धन का पर्व

अभिव्यक्ति न्यूज़ : उत्तराखंड

रक्षा बन्धन का पर्व---इस वर्ष 29 वर्षों वाद बन रहा है,विशिष्ट व प्रभावकारी संयोग।जानिए रक्षा बन्धन के महत्व को---अनूठी परम्पराओं की वाहक भारतीय संस्कृति में हर पर्व व त्योहार की अद्भुत मान्यता है ,इन सभी त्योहारों का भी  शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अपना-अपना महत्व है ।इन सभी त्योहारों के पीछे कोई न कोई मार्मिक  व हृदय स्पर्शी प्रसंग व महात्म्य भी जरूर जुड़ा हुआ है ।इसी क्रम में रक्षा बन्धन का त्यौहार भी है जो कि भाई के प्रति वहिन के असीम स्नेह और वहिन के प्रति भाई के कर्तव्य को उजागर करने वाला त्योहार है।
यह त्यौहार भाई बहिन के प्रति प्रेम का प्रतीक है ।श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाये जाने वाले इस
त्यौहार में वहिन भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है,और भाई बहिन को आजीवन रक्षा का बचन देता है ।रक्षाबंधन को लेकरके भारतीय धर्म ग्रंथों में कई कथाओं का विवरण मिलता है ।
इस सन्दर्भ में मान्यता है कि शिशुपाल वध के समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई थी।द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साडी फाड कर चीर उनकी अंगुली में बांध ली।इस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन
था।श्रीकृष्ण भगवान ने चीरहरण
के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था।
दूसरी कथा इस रूप में निरूपित
होती है कि एक बार राजा वलि ने यज्ञ सम्पन्न कर स्वर्ग पर अपना अधिकार का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से
प्रार्थना की।विष्णु ब्राह्मण का भेस बनाकर राजा वलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए ।गुरु के मना करने पर भी वलि ने तीन पग में
आकाश-पाताल और धरती नापकर राजावलि को रसातल दिया ।उसने अपनी भक्ति से विष्णु जी से हर समय अपने साथ रहने का वचन ले लिया ।लक्ष्मी जी इस बात से चिन्तित हो गई।
देवर्षि नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी वलि के पास गई और रक्षा सूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना
दिया ।दक्षिणा के बदले में विष्णु भगवान को अपने साथ ले आई।उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
एक बार मेवाड के महाराजा विक्रमादित्य की माता रानी कर्मवती ने मुगल शासक हुमायूँ को गुजरात व मालवा के शासक
के चित्तौड़ आक्रमण के विरुद्ध
सहायता देने के लिए राखी भेजी थी ।हुमायूँ ने राखी की लाज रखते हुए उनकी सहायता की।
कहा जाता है कि सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के शत्रु पुरू
को राखी बांधकर अपना भाई बनाया था।युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने वचन लिया था ।पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी वहिन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुये सिकन्दर को जीवन दान दिया
था ।
रक्षाबंधन के विषय में एक अन्य कथा भी प्रचलित है।एक बार राक्षसों और देवताओं में 12वर्षों तक भीषण युद्ध हुआ ।इसमें देवताओं के राजा इन्द्र बुरी तरह पराजित हुए और तब गुरु वृहस्पतिदेव के कहने पर उन्होंने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ब्राह्मणों के हाथों से रक्षा सूत्र बांधा तो उन्हें विजय प्राप्त हुई और तब से निरन्तर यह त्यौहार मनाया जाता है ।
रक्षाबंधन की पावनता से यमलोक भी अक्षूता नहीं है ।इस दिन मृत्यु के देवता यम को उनकी बहिन यमुना ने राखी बांधी और अमर होने का वरदान मांगा ।यम
ने इस पर्व के विषय में कहा कि---जो भाई अपनी बहन से राखी बंधवायेगा ,वह लम्बी उम्र जियेगा ।उसे कष्टों से छुटकारा मिलेगा ।
इस वर्ष यह पुनीत पर्व 3अगस्त को है,इस दिन श्रावण मास का सोमवार है ।इस तरह से यह दिव्य संयोग 29वर्षों के बाद बन रहा है इस बार रक्षाबंधन पर स्वार्थ सिद्ध और दीर्घायु शुभ योग बन रहा है ।पूरे दिन भर पहली बार भद्रा और ग्रहण की साया भी पर्व पर नही पड रही है ।सुबह से सांय तक पूरा शुभाशुभ योग है -लेखक-
अखिलेश चन्द्र चमोला ।स्वर्ण पदक प्राप्त ।राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय सम्मानोपाधियो से सम्मानित हिन्दी अध्यापक तथा नशा उन्मूलन प्रभारी शिक्षा विभाग जनपद पौडी गढवाल ।
Share on Google Plus

About Abhivyakti

0 Comments:

Post a Comment